________________
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व
संवत् १९२३ का मिती श्रावण बद ४ दिने एषा पुस्तिका लिपीकृत्वा ।), जिसमें निम्नानुसार उल्लेख पाया जाता है :
__"यह टीका खरड़ा की नकल उतरी है। मल्लजी कृत पीठबंध यादि सम्पूर्ण महीं भई है । मूलको अर्थ सम्पूर्ग प्राय गयी है। परन्तु सौधि पर मल्लजी को फरि उतरावणी छै। वीछति होवाके वास्ते जेत खन्दा ही उतार लिया है। सिदिलों और पानी इहीयों उतरवाज्यो मती' । __इसस सिद्ध होता है कि श्रावण कृष्णा ४ वि० सं० १८२३ तक पंडित टोडरमल विद्यमान थे और उसके बाद उन्होंने त्रिलोकसार का संशोधन भी किया। अतः यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पंडित टोडरगल को मृत्यु कार्तिक शुक्ला ५ वि० सं० १८२३ या २४ के बाद दस-पांच दिन के भीतर ही हुई होगी।
परिवार
पंडितजी के पिता का नाम जोगीदास एवं माता का नाम रम्भादेवी था'। ये जाति से खंडेलवाल थे और गोत्र था गोदीका,
१ "रम्भापति स्तुत गुन जनक, जाको जोगीदास । सोई मेरी प्रान है, धारै प्रगट प्रकाश ॥३७।।"
-रा० चं० प्र० २ खण्डेलवाल जाति का इतिहास श्वेताम्बर पति श्रीपाल चन्द्र 'जन सम्प्रदाय शिक्षा' (पृष्ठ ६५६) में इस प्रकार बताते हैं :- खण्डेलानगर में सूर्यवंशी चौहान खुण्डेलगिरि राजा राज्य करता था। उक्त राज्य के अंतर्गत ८४ ठिकाने लगते थे । एक समय वहाँ भयंकर • महामारी का प्रकोप हुना । हजारों लोग काल कवलित होने लगे। वहाँ का राजा दिगम्बर प्राचार्य जिनसेन की शरण में गया और उनके प्रताप से शान्ति हुई । परिणामस्वरूप राजा ने ८४ ठिकाणी के उमगवों गहिन जैन धर्म स्वीकार वार लिया । चण्डला से सम्बन्धित होने से सभी स्त्रपडेलवाल कहलाए । गना का गोत्र शाह रखा गया तथा बाकी लोगों के गोत्र' नाम के अनुसार रखे गए।