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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तत्व वरन अपने दोषों को दूर कर जीवन को परम पवित्र बनाने के लिए था। मोक्षमार्ग प्रकाशक में अनेक प्रकार के मिथ्याष्टियों (अज्ञानियों का वर्गान करने के उपरान्त वे लिखते हैं :
"यहां नाना प्रकार मिथ्याहाटीनि वा कथन किया है। याका प्रयोजन यह जानना, जो इन प्रकारनिकौं पहिचानि आपवित्रं ऐसा दोष होय ती ताकौं दूर करि सम्यश्रद्धानी होना। औरतिहो के ऐमे दोष देखि कषायी न होना । जातं अपना भला बुग तो अपने परिगामनि त हो है। औरनिकों तो रुचिवान देखिए, तो किछु उपदेश देय बाका भी भला कीजिए। ताले अपने परिणाम सुधारने का उपाय करना योग्य है।" कार्यक्षेत्र और प्रचार कार्य
प्रात्मस्वरूप की प्राप्ति और आध्यात्मिक तत्त्व-प्रचार ही उनका एकमात्र लक्ष्य था । लौकिक कार्यों में आपकी कोई रुचि न थी। साहित्य निर्मागा तो तत्स्त्र-प्रचार का माध्यम था । यही कारण है कि आप अपने जीवन का अधिकांश समय स्वानभव प्राप्ति के यत्न और जास्त्राध्ययन, मनन, चिन्तन, लेखन, तत्त्वोपदेश एवं तत्सम्बन्धी साहित्य-निर्माण में ही लगाते थे। अपने पाठकों और थोतानों को भी निरन्तर इसी की प्रेरगा दिया करते थे। वे सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका की पीठिका में लिखते हैं :__ "परन्तु अभ्यासविर्ष अानसी न होना। देखो, शास्त्राभ्याम की महिमा जाकों होतं परम्परा प्रात्मानभन्ब दशा की प्राप्त होइ । सो मोक्षमार्ग का फल निपज है, मो तो दुर ही तिष्ठौ, तत्काल ही इतने गुरण हो हैं, क्रोधादि कपानि की तो मंदता हो है, पंचेन्द्रियनि की विषय नि विर्षे प्रवृत्ति रुकै है, अति चंचल मन भी एकाग्र हो है, हिसादि पंच पाप न प्रवत्त हैं'......।
। मो. मा० प्र०, ३६२ २ परगासार भाघाटीका, यन्तिम वाक्य ३ मो० मा० प्र०, २६-३० में रहस्यपूर्ण चिट्ठी