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पंडित टोडरमल ; व्यक्तिस्त्र और कर्तृत्व उक्त कथन में उनका उद्देश्य नारी की निन्दा करना नहीं था किन्तु बासना की आग में स्वयं जल रहे मानत्रों को और उसी में न धकेल देने के प्रति सावधान करना था । क्योंकि :
राग उदै जग अंध भयो, सहजै सब लोगन लाज गवाई । सीख विना नर सीखत है, विसनादिक सेवन की सुघराई ।। ता पर और रचें ररा काव्य, कहा कहिए तिनकी निठुराई । अंध असूझन की अंखियान में, भौंकत हैं रज राम दुहाई' ।।
भगवान नेमिनाथ और राजुल के प्रसंग को लेकर शुगार रस की कविताएँ जैन कवियों की भी मिलती हैं पर उनमें मर्यादा का उल्लंघन कहीं भी देखने को नहीं मिलता। ___जैन साहित्य की मूल प्रेरणा धर्म है । जैन साहित्य ही क्या प्रायः सम्पर्ण मध्ययुगीन भारतीय साहित्य धार्मिक भावना से प्रोत-प्रोत है। धर्म से साहित्य का अच्छेद्य सम्बन्ध है । साहित्य को धर्म से पृथक् नही किया जा सकता है। धानिक साहित्य होने मात्र से कोई रचना साहित्य कोटि से अलग नहीं की जा सकती । चाहे जिस काल का साहित्य हो उसमें तत्कालीन अवस्था का चित्र अवश्य अंकित होगा। साहित्य का बहुत बड़ा भाग धर्म पर अवलम्बित है । धार्मिक सिद्धांतों के आधार पर एवं धार्मिक मान्दोलनों के कारण साहित्य के विशिष्ट अङ्गों की उत्पत्ति एवं विकास हुआ है।
विद्वानों के ये कथन जैन साहित्य के अतिरिक्त राजस्थान में उद्भूत अनेक संप्रदायों और उनके कवियों आदि पर भी पूर्णतः लागू हैं। विष्णोई सम्प्रदाय, दादू पंथ, निरंजनी सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय और इनके कवियों की भी मूल प्रेरणा धर्म और अध्यात्म है। यहाँ इनमें से कतिपय का नामोल्लेख ही किया जा सकता है, यथा :- पदम, १ जन शतक, छन्द ६४ २ हिन्दी साहित्य का भादिकाल, ११ 3 जीवन और साहित्य, ६७ ४ हि सा इति० रसाल, १४ ५ राजस्थानी भाषा और साहित्य, १७२-२६४