Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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সানি।
नमन उनको कोटि कोटि, जो अध्यात्म पथ के देवता, सन्त सच्चे सरल ऊँचे, आचार जिनकी सम्पदा। अनुभूत जिनको देह से, चैतन्य की थी भिन्नता, मोक्ष के सच्चे पथिक, लक्ष्य जिनका था सधा।। अप्रमत्तता व ध्यान सम्बल, श्रमण जीवन का बनाया, सत्य संयम शील से, त्रिरत्न को जग में दिपाया। जगो, उठो, आगे बढ़ो, उपदेश यही पावन दिया, आत्म दोषों के निवारण का, ही संदेश मुखरित किया।। कलह क्लेश और द्वन्द्व को, दूर करना ही सिखाया, आत्म भावों के उत्थान को, मर्म जीवन का बताया। मोह ममत्व आरम्भ-परिग्रह, को मूल दुःख का पढ़ाया, स्वाध्याय और सामायिक से, निर्माण जीवन का सुझाया।। आगमसेवी युगप्रभावक, करुणामूर्ति महात्मा, स्वाध्याय के सत्प्रकाश से, जगमगाएँ आत्मा। उच्च विचारों को अपना कर, बन जाएँ धर्मात्मा, सामायिक की उत्कृष्टता से, हो जाएँ परमात्मा।। कुव्यसन सारे छोड़ दें, तप संयम पर जोर दें, नीति और प्रामाणिकता का, जीवन में रस घोल दें। बाल युवा पुरुष नारी, स्व को धर्म से जोड़ दें, सम्यग्दृष्टि बन कर सपने, सारे सुपथ पर मोड़ दें।। विद्वत्ता और साधना के उच्च शिखर से भाषते, सन्तोष शांति अभय मैत्री, और प्रमोद को प्रकाशते। साधना की सुधावाक् से, लाखों का जीवन संवारते, गुरुदेव पूज्याचार्य हस्ती, 'धर्म'-हृदय में विराजते।।