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विशाल भारत के इतिहास पर स्थूल दृष्टि १४३ प्रभाव यूनानी विद्वानों पर पड़ा। कला पर भी भारत का गहरा प्रभाव पड़ा जिसके फल स्वरूप “यूनानी-बौद्ध-कला" (Greeco-Buddhist Art ) की उत्पत्ति हुई।।
अपने इस आत्म-समर्पण तथा विश्वप्रेम के आदर्श को भारतवर्ष ने सदैव सामने रखा और. पूरी तरह निबाहा ।'
_. यही प्रादर्श इस देश के साहित्य में हर भारतवर्ष का आदर्श और उसकी सफलता
" जगह हमें मिलता है । पहली और दूसरी
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शताब्दी ईसवी में जब मध्य एशिया की प्रार्य-बौद्ध जातियाँ इस देश में पाई तब उनको अपनाने में भारतीय जनता ने तनिक भी रोक टोक न की। इतना ही नहीं, किंतु उसने हीनयान, अर्थात् केवल व्यक्तिगत निर्वाण के मा के अतिरिक्त महायान अर्थात् समस्त मानव समाज की शांति एवं मोक्ष प्राप्ति के मार्ग की योजना की। उस समय के सर्वोच्च पंडित अश्वघोष ने उसी सामाजिक प्रादर्श को फैलाया जिसकी पूर्ति के लिये महाराज अशोक ने जीवन भर प्रयत्न किया था। अब उसको समस्त भारतीय जनता ने अपना लिया। ईसा की पहली शताब्दी से भारतवर्ष ने अपने विश्व-प्रेम का संदेसा फैलाना प्रारंभ कर दिया। अल्पात्मा को विश्वात्मा अथवा सूत्रात्मा के लिये समर्पण करने के इस महान् आदर्श को लेकर भारतवर्ष ने प्रात्मिक साम्राज्यनिर्माण के पथ का अनुसरण किया और थोड़े ही समय में मार्य संस्कृति तिब्बत, चीन, कोरिया, जापान, बर्मा, श्याम, इंडो-चायना, जावा इत्यादि इत्यादि स्थानों में फैल गई। इस प्रकार भारत की विश्व-विजय हुई और भारतीय संस्कृति का
(१) मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे वेद ।
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