Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
है। इसके प्रयोग से मानवीयता की सर्वव्यापकता एवं उसकी संरक्षणता का भी बोध हो सकता है। अनेकान्त की व्यापकता
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार आधार स्तम्भों पर खड़ा यह अनेकान्त विश्व की समस्त समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है। आगम युग से पूर्व, आगम अर्थ के उद्घोषकों एवं सूत्रकारों ने इसका व्यापक उपयोग किया। आगम युग से तर्क की कसौटी पर घिसे जाते हुए इस अनेकान्त के बिना न्याय जगत् में किसी भी वादी या प्रतिवादी का काम नहीं चलता था। न्याय के आते ही तर्क के सूत्रों में बँधकर तर्ककारों ने, कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं रहा, जहाँ इसका प्रयोग न किया हो। आचारांग, सूत्रकृतांग, समवायांग आदि आगम में जो कुछ भी कथन किया गया वह सब प्रश्नोत्तर रूप में ही है। गौतमस्वामी, जम्बूस्वामी, सुधर्मा-स्वामी आदि प्रश्नकर्ता के रूप में विश्वव्यापी समस्याओं को किसी न किसी रूप में अवश्य रखते थे। जो कुछ पूछा जाता था, वह प्रश्न रूप में ही होता, उसका जो कुछ भी उत्तर दिया जाता था, वह सब तर्क पर आधारित अनेकान्त की पुष्टि ही करता था।
"के अहं आसी? के वा इओ चुए इह पेच्चा भविस्सामि।'' मैं कौन था? मैं इस जन्म से मरकर कहाँ जाऊँगा? जो इमाओ अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ....... सोऽहं। जो सर्वत्र गमन करने वाला है, वही मैं हूँ। पुन: ‘सोऽहं' के पश्चात् से “आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी।' ६
इस सूत्र में एक दृष्टि को दर्शाया कि विविध मान्यताओं वाले भी अनेकान्त की व्यापक उपयोगिता पर प्रश्न चिह्न लगाने में समर्थ नहीं हो सके।
जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ''७
यह सूत्र एक में अनेक और अनेक में एक वस्तु को प्रस्तुत कर अनेकान्त की अनन्त-धर्मात्मक रूप व्यापक दृष्टि का पूर्ण समर्थन कर देता है। 'दीपक से गगन मण्डल पर्यन्त स्थित समस्त वस्तुओं के एक से लेकर अनन्त धर्मों का रहस्य खोल देता है। अनन्त-धर्मात्मक वस्तुओं को जान लेने का अर्थ है विश्व की समस्त वस्तुओं की प्रतीति। कुछ ऐसी ही हैं विश्व और उसकी समस्याएं क्योंकि विश्व एक होते हुए भी अनेकरूप है। अनेक राष्ट्र हैं, उन अनेक राष्ट्रों में अलग-अलग राज्य हैं; अलग-अलग राज्यों में नगर, ग्राम और उन सभी में रहने वाले लोग भी अनन्त हैं; प्रत्येक की समस्या पृथक्-पृथक् वचन
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