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अनेकान्तवाद एवं आधुनिक भौतिक विज्ञान
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भौतिक विज्ञान में भी इलेक्ट्रान का कणरूप एवं प्रकाश का तरंग रूप प्रारम्भ में इतना अधिक चर्चित होता है कि साधारण विद्यार्थी यही मानने लगते हैं कि मूलत: इलेक्ट्रान कण है व अपवाद् स्वरूप तरंग भी है। यह धारणा गलत है। वस्तुस्थिति यही है कि उसके प्रत्येक रूप के साथ कथंचित या स्यात्पना छिपा हआ है। अत: न केवल विज्ञान एवं व्यावहारिक जगत् में अपितु आध्यात्मिक कथनों में भी जब कभी 'किसी अपेक्षा से' या ‘स्यात्' विशेषण गौण हों तब उस कथन का मर्म समझने हेतु उसमें छिपी हुई 'अपेक्षा' को समझना आवश्यक होगा।
एक उदाहरण से उक्त कथन स्पष्ट हो सकता है, जैसे शास्त्रों में इस प्रकार का कथन आता है कि 'घर कारागृह वनिता बेड़ी परिजन जन रखवाले' अर्थात् घर एक कैद है, पत्नी हथकड़ी है व रिश्तेदार उस कैद के सिपाही हैं। अब यहां 'स्याद्वाद' लगाना नहीं भूलना चाहिए कि किसी अपेक्षा से ऐसा कहा गया है। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि अपनी पत्नी व घर को छोड़कर दूसरे शहर में दूसरी महिला से नाता जोड़ा जाये। वस्तुत: जब तक गृहस्थपने की सुविधाओं में आसक्ति है तब तक परिवार को यथायोग्य स्नेह, सम्मान एवं अधिकार प्रदान करना ही चाहिए।
व्यावहारिक जीवन में भी किसी भी घटना या कथन में छिपे हुए विचित्र अभिप्रायों को समझने का प्रयास करें तो जीवन में बहुत कुछ शान्ति एवं समृद्धि पा सकते हैं। जब हमारे रिश्तेदार या मित्र अप्रिय वाक्य बोलते हैं तब हम स्याद्वाद को याद करके उस वाक्य में छिपे हुए प्रेम या हित या अन्य मजबूरी को पहचान कर नाराज होने से या अपने ही व्यक्ति से दुश्मनी करने से बच सकते हैं। इसी प्रकार जीवन की किसी घटना में उसके तत्काल हानिकारक प्रतीत होने वाले पक्ष के साथ-साथ उसके संभावित लाभदायक उजले पक्ष पर भी विचार करें तो स्याद्वाद का दर्शन हमारे जीवन को धन्य बना सकता है।
इस भूमिका के साथ आगे के पृष्ठों में कुछ उदाहरण सारणी के रूप में दिए जा रहे हैं। सारणी के प्रथम स्तम्भ में भौतिक विज्ञान में अनेकान्तवाद संबन्धित उदाहरण है। दूसरे स्तम्भ में अध्यात्म से संबन्धित उदाहरण हैं। मुख्य उद्देश्य अध्यात्म के अनेकान्तवाद को समझाने का है। अत: भौतिक विज्ञान का उदाहरण अध्यात्म की विषय वस्तु के अनुसार चुना गया है।।
जैसे बाहर का छिलका सड़ा-गला हो तो अन्दर आम का रस शुद्ध एवं स्वादिष्ट नहीं रह सकता है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन की पवित्रता के बिना आध्यात्मिक जीवन की श्रेष्ठता संभव नहीं है। जीवन में साम्यभाव, तनाव शैथिल्य एवं मानसिक संतुलन हेतु व्यावहारिक जीवन को भी सुधारना आवश्यक होता है। इसे ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सारणी के तीसरे स्तम्भ में पहले एवं दूसरे स्तम्भ के अनुरूप व्यावहारिक जीवन में उपयोगी सूत्र प्राप्त किये गये हैं। तीनों स्तम्भों की विषयवस्तु
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