Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अनेकान्त की उपयोगिता
ईश्वरचन्द जैन
जैनदर्शन के अनुसार
अनेकान्तवाद जैन दर्शन का अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। आज के दुराग्रह और हठधर्मिता से तिलतिल भरे जीवन में अनेकान्तवाद समन्वय का सबसे बड़ा साधन है। एकान्त निग्रह है, फूट है। अनेकान्त मैत्री है, सन्धि है, मैत्री ही नहीं बल्कि विश्वमैत्री है। केवल इतना ही यदि समझ लिया जाय तो विश्व शान्ति के मूल को जाना जा सकता है। जिस तरह सही मार्ग पर चलने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय यातायात संकेत बने हुए हैं और सब उनके अनुसरण से ठीक-ठाक चल लेते हैं। स्वस्थ चितंन के मार्ग पर चलने के लिये अनेकान्तवाद ने भी इसी तरह के सात संकेतों की रचना की है। उनका अनुसरण करने पर किसी बौद्धिक दुर्घटना की आशंका नहीं रह जाती है। मोक्षमार्ग पर चलने के लिए अनेकान्तवाद एक विश्वसनीय चिन्तन प्रणाली है। सम्यग्ज्ञान की नीव यही स्याद्वाद है। सम्यग्ज्ञान राजमार्ग है एवं कैवल्य गन्तव्य है।
सम्यग्ज्ञान का मूल आधार स्याद्वाद है। पहले समय फिर परख, फिर तलाश, फिर पहुंच। सम्यग्ज्ञान तक पहुंचने का राजमार्ग है अनेकान्तवाद। शोध के पूर्व शोधनिधि का जानना भी महत्त्वपूर्ण है। अनेकान्तवाद सत्य की शोधपद्धति है-एक प्राञ्जल जीवन दर्शन की सुचिन्तन परिपाटी है। इससे सत्य अपने दिगम्बर रूप में आ
खड़ा होता है। अनेकान्तवाद में आत्मानुशासन तथा जीवन के अन्य विविध संदर्भो के लिये एक विधायक जीवन दृष्टि समायी हुई है।
अनेकान्त दर्शन की सुखद निरापद पगडन्डी पर चलकर हम वस्तुस्वरूप की व्याख्या इस तरह कर सकते हैं कि "द्रव्य की दृष्टि से वस्तु नित्य, अविनाशी और शाश्वत है किन्तु वही वस्तु पर्याय (Modes) की दृष्टि से अनित्य, विनाशील और अशाश्वत है। अनेकान्त साफ सुथरा-सुगम बोध है। किसी भी वस्तु को समझने के लिये उस वस्तु को समस्त पहलुओं से देखना, समझना और यह मानना कि उसका न तो एक ही आयाम है औन न एक ही पहलू। अत: यदि उसे उसके समस्त सन्दर्भो
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