Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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सप्तभंगी बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में
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है। मेरा यह दावा नहीं है कि मेरा दिया हुआ उपर्युक्त प्रतीकीकरण अन्तिम एवं सर्वमान्य है। उसमें परिमार्जन की संभावना हो सकती है।
अब सप्तभंगी की यह प्रतीकात्मकता संभाव्यता तर्कशास्त्र के उपर्युक्त प्रतीकीकरण के अनुरूप है। इसलिए यह उससे तुलनीय है। जिस प्रकार सप्तभंगी में उत्तर के चारों प्रकथन पूर्ण के मूलभूत तीनों भंगों के सांयोगिक रूप हैं और प्रत्येक कथन को 'च' रूप संयोजक के द्वारा जोड़ा गया है, उसी प्रकार संभाव्यता तर्क शास्त्र के उपर्युक्त सिद्धान्त में तीन मूलभूत भंगों की कल्पना करके आगे के भंगों की रचना में संयोजन अर्थात् Conjunction का ही पूर्णत: व्यवहार किया गया है। जिस क्रम में सप्तभंगी की विवेचना और विस्तार है, उसी क्रम का अनुगमन संभाव्यता तर्कशास्त्र का उक्त सिद्धान्त भी करता है। एक रुचिकर बात यह है कि सप्तभंगी के सातवें भंग में क्रमार्पण और सहार्पण रूप तीसरे और चौथे भंग का संयोग माना गया है । इस संदर्भ में सप्तभंगीतरंगिणी का निम्नलिखित कथन द्रष्टव्य है- 'अलग-अलग क्रम-योजित
और मिश्रित रूप अक्रम योजित द्रव्य तथा पर्याय का आश्रय करके 'स्यात् अस्ति नास्ति च अवक्तव्यश्च घटः, किसी अपेक्षा से सत्व-असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व का आश्रय घट है- इस सप्तम भंग की प्रवृत्ति होती है। इसका भाव यह है कि अस्ति और नास्ति भंग के क्रमिक और अक्रमिक संयोग से अवक्तव्य भंग की योजना है अर्थात् अस्ति और नास्ति के योजित रूप 'आस्ति और नास्ति के अक्रम रूप अवक्तव्य को जोड़ा गया है। अब यदि अस्ति A है,नास्ति ~B और अवक्तव्य ~C है, तो सातवें भंग का रूप होगा A.~B में ~ C का योग। जो संभाव्यता तर्कशास्त्र के उपर्युक्त सिद्धान्त के अन्तिम कथन से मेल खाता है।
जिस प्रकार सप्तभंगी में तीन मूल भंगों से चार ही यौगिक भंग बनने की योजना है, उसी प्रकार संभाव्यता तर्कशास्त्र में भी तीन स्वतन्त्र घटनाओं के संयोग से चार सांयोगिक स्वतन्त्र घटनाओं की अभिकल्पना है। वस्तुत: ये सभी बातें जैन तर्क शास्त्र को स्वीकृत हैं। इसलिए इस प्रतीकात्मक प्रारूप को सप्तभंगी पर लागू किया जा सकता है।
अब सप्तभंगी की मूल्यात्मकता को निम्नरूप से चित्रित करने का प्रयास किया जा सकता है। यदि स्यादस्ति, स्यान्नास्ति और स्याद्वक्तव्य अर्थात् A, B और C को एक-एक वृत्त के द्वारा सूचित किया जाय, तो उन वृत्तों के संयोग से बनने वाले सप्तभंगी के शेष चार भंगों के क्षेत्र इस प्रकार होंगे -
BOB
ABCN
A
AR
)
।
~B
A
(A-B
Ankha
-B
चित्र सं १
चित्र सं २
चित्र सं३
चित्र सं४
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