Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 450
________________ अनेकान्तवाद : एक दार्शनिक विश्लेषण कर्मपरमाणुओं की अपेक्षा मुक्त हुए हैं, न कि अन्य आत्माओं से संयुक्त कर्मपरमाणुओं की अपेक्षा। यदि वे अन्य आत्माओं से संयुक्त कर्मपरमाणुओं की अपेक्षा भी सिद्ध माने जाँय तो इसका अर्थ यह हुआ कि अन्य आत्माओं के धर्म भी सिद्धजीव के स्वपर्याय हैं, तभी तो वह अन्य आत्माओं से संयुक्त कर्मपरमाणुओं की अपेक्षा भी सिद्ध माना जाता है। इस तरह अन्य संसारी आत्माओं तथा सिद्ध आत्माओं में सीधा स्वपर्याय का सम्बन्ध होने से अभेदरूपता हो जायेगी और इससे या तो समस्त संसारी जीव सिद्ध हो जायेंगे या फिर सिद्ध संसारी हो जायेंगे। अभेद पक्ष में एकरूपता ही हो सकती है। या तो सब संसारी बने रहें या फिर सब मुक्त हो जाँय । इसी तरह अनेकान्तवाद में कहा हुआ भी वचन कथंचित् नहीं कहा हुआ, किया हुआ कार्य कथंचित् न किया हुआ, खाया हुआ भी भोजन कथंचित् नहीं खाया हुआ होना चाहिए, इत्यादि दूषण भी असत्य हैं; क्योंकि एक ही वस्तु में भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से विरोधी धर्म मानना प्रमाण सिद्ध है। जो कार्य किया गया है, उसकी ही अपेक्षा कृत, जो बात कही गयी है, उसकी ही अपेक्षा उक्त तथा जो भोजन खाया गया है, उसकी ही अपेक्षा भुक्त व्यवहार हो सकता है, न कि अन्य वस्तुओं की अपेक्षा । अतः अन्य वस्तुओं की अपेक्षा 'अकृत, अनुक्त या अभुक्त व्यवहार होने में कोई बाधा नहीं आती। सिद्धों के कर्मक्षय में अनेकान्तरूपता प्रश्न आपके सिद्ध मुक्त जीवों ने कर्मों का एकान्त से सर्वथा क्षय किया है या कथंचित् ? यदि सर्वथा क्षय किया है तो अनेकान्तवाद कहाँ रहा ? जहाँ कोई भी बात 'सर्वथा ऐसा ही है', मानी वहीं एकान्तवाद का प्रसङ्ग हो जाता है। यदि सिद्धों ने कर्मों का क्षय कथंचित् किया है तो इसका यह अर्थ हुआ कि आपके सिद्ध सर्वथा कर्मरहित नहीं हैं, उनमें भी कथंचित् कर्म का सद्भाव है, जैसे कि संसारी जीवों में। इस तरह अनेकान्तवाद बड़ी अव्यवस्था उत्पन्न कर देता है। - 385 उत्तर सिद्ध जीवों ने भी कर्मपरमाणुओं की स्थिति, फल देने की शक्ति तथा अपने प्रति कर्मत्वरूप से परिणमन करने का नाश किया है, न कि कर्मपरमाणुमात्र का समूलनाश। उन्होंने उन परमाणुओं का अपनी आत्मा में कर्मरूप से सम्बन्ध नहीं रहने दिया। परमाणुरूप पुद्गल द्रव्य तो नष्ट नहीं किया जा सकता। कोई अनन्तशक्तिशाली भी किसी द्रव्य का समूलनाश नहीं कर सकता। यदि इस तरह परमाणुओं का नाश होने लगे तो फिर मुद्गर आदि के परमाणुओं तक समूलनाश होने से एक न एक दिन संसार से परमाणुओं का नामोनिशाँ मिट जायेगा । उनका सर्वापहारी लोप हो जाने से संसार के समस्त पदार्थों का अभाव हो जायेगा। अतः जिस तरह मुद्गर की चोट घड़े की पर्याय का नाश करती है और परमाणुओं को पड़े रहने देती है, उसी तरह सिद्ध भी कर्मपरमाणुओं की कर्मत्वपर्याय का नाश करते हैं, न कि परमाणुओं का। वे परमाणु - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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