________________
430
Multi-dimensional Application of Anekāntaväda
जनसमाज का जीना दूभर हो गया है। कोई सरकार स्थिरता, समृद्धि, स्वच्छ प्रशासन लोकप्रिय जनसेवा देने में सक्षम नहीं है। आज वोटगत एवं दलगत राजनीति का ही सर्वत्र साम्राज्य है। जिसके मूल में है अनैकान्तिक दृष्टि का अभाव। आज व्यक्ति केवल एक दायरे में सीमित नहीं रह सकता। बौद्धिक प्राणी (Man is a rational animal) होने से मनुष्य से एक संतुलित विचारधारा की अपेक्षा की जाती है। परिवार समाज और राष्ट्र के प्रति उसका नैतिक कर्तव्य होता है, लेकिन उसकी ओर से हम आँखें मूदकर चलते हैं और परिणाम स्वरूप भ्रष्टाचार, अनैतिकता एवं दुर्व्यवस्था बढ़ती है। एक पक्ष की पद्धति दूसरे को ग्राह्य नहीं। ऐसे समय सभी पक्षों को तटस्थ होकर अनेकान्त दृष्टिबिन्द से ही विचार विमर्श करना चाहिए। अपने दृष्टिबिन्दु से किसी कानून-सिद्धान्त को महत्त्व देना और अन्य को हेय, तिरष्कृत समझना योग्य नहीं है। राष्ट्रहित को प्राधान्य देने के लिए पूर्वाग्रह, अन्धविश्वास को छोड़कर तर्क प्रणाली अपनानी चाहिए। देश-काल और परिस्थितियों के संदर्भ में सिद्धान्तों को देखना चाहिए। व्यक्तित्व के विकास में
जैन दर्शन का ध्येय रहा है- आध्यात्मिक अनुभव अर्थात् स्वतन्त्र आत्मा का अपने शुद्ध स्वरूप में अवस्थिति। अनेकान्तवादी दृष्टिकोण से बाहरी परिवर्तनों से आन्तरिक परिवर्तन कभी-कभी हो सकता है, लेकिन व्यक्ति की विचारधारा के विकास से बाह्य सम्बन्धों और व्यवहारों में स्वयं परिवर्तन आ जाते हैं। व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर पाने के लिए तटस्थ और विकसित विचारधारा का होना आवश्यक है। ऐसी विचारधारा अनेकान्तवाद को स्पष्ट रूप से समझने पर ही प्राप्त हो सकती है, जिससे स्व-पर का कल्याण हो सकता है। हमारा सारा जीवन समरांगण है, हम इसमें आगे बढ़ना चाहते हैं, स्थिर खड़े रहना भी चाहते हैं, तब यही अनेकान्तवाद इस जीवन-संग्राम का एक आयुध (शस्त्र) बन कर हमारी सहायता कर सकता है। कर्मों को हम वैयक्तिक परिस्थिति कह सकते हैं, लेकिन यही वैयक्तिक स्वतन्त्रता यदि अनेकान्त दृष्टि से युक्त होती है, तब एक वस्तु की स्वतंत्रता दूसरों के लिए बाधक न होकर सहायक होती है।
___ अपेक्षावाद समन्वय की ओर गति रखने वाला कदम है। इसके आधार पर परस्पर विरोधी मालूम पड़ने वाले विचार सरलता पूर्वक सुलझाए जा सकते हैं। मध्ययुगीन दर्शन प्रणेताओं की गति इस ओर कम रही। जैन दार्शनिक नयवाद के ऋणी होते हुए भी उस सीमा तक अपेक्षा का खुल कर उपयोग नहीं कर सके, जिस सीमा तक अनेकान्तवाद की अपेक्षा है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में
अनेकान्तवादी विचारधारा से मनोविज्ञान का गहरा सम्बन्ध है। प्रत्येक व्यक्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org