Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 498
________________ अनेकान्तवाद 433 हृदय से है, भावना से है, मस्तिष्क से उतना नहीं है। अध्यात्म बुद्धि, तर्क, विचार की गहराई से प्रत्यक्षतः जुड़ा है। धर्म या दर्शन का कोई भी सिद्धान्त, पद्धति व्यक्ति की चेतना को उर्ध्वगामी बनाने के लिए होती हैं। व्यक्ति क्रमश: उन साधनों को, विचारपहलओं को अपना कर हृदय में एकाग्रता, स्वस्थता व शान्ति का अनुभव कर सके इसी में धर्म और दर्शन की चरितार्थता है। अनेकान्तवादी विचार पद्धति को हमनें केवल दार्शनिक पुस्तकों में सीमित कर रखा है, उसके अनेक नयों की शास्त्रीय चर्चा बखूबी करते हैं। उसका गहन विश्लेषण पुस्तकों में उपलब्ध है, लेकिन व्यावहारिक जगत् में इसे कैसे लोक योग्य बनाया जाए, सामान्य से सामान्य व्यक्ति कैसे सरलता से इसे समझ कर अपना सके और इसके द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास कर पाये, इन सभी बातों पर गौर नहीं किया गया है। इसे केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण न समझकर सार्वजनीन उपयोगी बनाने के प्रयत्न होना चाहिए, तभी यह 'अनेकान्तवाद' कोई 'वाद' या 'सिद्धान्त' के सीमित दायरे में बंधा न रहकर लोगों द्वारा स्वीकृत वास्तविक तथ्य बन सकेगा। अध्यात्म व्यक्ति को बहिर्जगत् से निर्लिप्त बनाकर अन्तर्जगत् की ओर उन्मुख करता है। व्यक्ति अपने-आप में लीन रहने का प्रयास अध्यात्म की सहायता से करता है लेकिन इसके साथ-साथ मानव मात्र का कल्याण भी अध्यात्मवादी होने से चाहता है। वह द्वन्द्वात्मक तथ्यों, क्लेशों-टकरावों, राग-द्वेष, अहम्, मोह आदि विचारों से दूर रहना चाहता है। ऐसे समय और परिस्थितियों में अनेकान्तवाद उसकी विचार पद्धति को स्वच्छ करता है, पथ-प्रकाश दिखाता है। इसलिए जैनदर्शन में सिद्धान्तों के निरूपण की पद्धति के रूप में अनेकान्तवाद को काफी महत्त्व मिला है। ___जैन दर्शन में अनेकता के बीच एकता और एकता के बीच अनेकता का समन्वय स्वीकृत है, चाहे वह धर्म, समाज या व्यक्ति किसी से भी सम्बन्धित क्यों न हो। प्रसिद्ध विद्वान् पं० हीरालाल जैन का यह कथन इस संदर्भ में सर्वथा उपयुक्त है कि "भिन्न-भिन्न धर्मों के विरोधी मतों और सिद्धान्तों के बीच यह धर्म अपने 'स्याद्वादनय के द्वारा सामञ्जस्य उपस्थित कर देता है। यह भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति में सब जीवों के लिए समान अधिकार का पक्षपाती है तथा सांसारिक लाभों के लिए कलह और द्वन्द्वों को उसने पारलौकिक सुख की श्रेष्ठता द्वारा मिटाने का प्रयत्न किया है। जैनाचार्यों ने ऊँच-नीच, जाति-पाँति में भेद न करके अपना उदार उपदेश सब मनुष्यों को सुझाया तथा अहिंसा परमोधर्म के परामंत्र द्वारा उन्हें इन प्राणियों की रक्षा के लिए तत्पर बना दिया।"११ जैन दर्शन किसी भी विषय में पूर्वाग्रह नहीं रखता। सबके साथ सहयोग एवं विवेकपूर्ण व्यवहार रखते हुए अपने तथ्यों का स्पष्टीकरण करता है। अनेकान्तवाद इस दर्शन की विश्व को बहुमूल्य भेंट है। जैन दर्शन में इसे अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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