Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 521
________________ 456 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda नियोजन में 'मानवता' के पक्ष को केन्द्र में रखना होगा। हमारे राजनैतिक दावों में भी नियोजन का यह मानवीकरण प्रतिम्बित होना चाहिए'। सारांश यह है कि समूची अर्थव्यवस्था, राजनैतिक एवं समाज तंत्र यदि केवल प्रोद्योगिकी या एकांगी भौतिक उपलब्धियों के आधार पर खड़े किए जायेंगे तो सर्वविनाश के सिवाय और कोई चारा नहीं है। आज के समाज शास्त्रियों एवं अर्थशास्त्रियों ने कृत्रिम भूख को बढ़ाकर पूरे मानव समाज को संकट में डाल दिया है। आवश्यकताओं की पूर्ति को उचित माना जा सकता है किंतु कृत्रिम क्षुधा की शांति होना असम्भव है। कहा गया है - तन की तृष्णा तनिक है तीन पावके सेर । मन की तृष्णा अमित है मिलै मेर का मेर ।। मानव ने अपनी तृष्णा शांति के लिए प्रकृति का अधांधुंध, दोहन किया है। आगे आनेवाली पीढ़ियों के अधिकार को छीन लिया है। पर्यावरण संतुलन के संदर्भ में महावीर का अनर्थ दण्ड विरमण' महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आवश्यक हिंसा को छोड़ा नहीं जा सकता किंतु अनावश्यक को रोका जा सकता है। प्रयोग परीक्षण के नाम पर लाखों मासूम जानवरों की हत्या प्रकृति के साथ क्रूर खिलवाड़ है। पर्यावरण की ऐसी समस्या को देखकर कुछ विचारक यह सुझाव देते हैं कि मानव को पुन: गफा संस्कृति में चले जाना चाहिए। किंतु यह दृष्टिकोण भी व्यवहार्य नहीं है। अनेकान्त का चिंतन है कि यंत्रों का भी नियन्त्रित विकास हो जिससे संतुलन बना रहे। कर्मादान आदि क्रियाए पर्यावरण सुरक्षा के सूत्र हैं। जैन श्रावक की आचार संहिता को गहराई से देखा जाये तो वह अनेकान्त जीवन शैली की जीवनचर्या है। पर दुर्भाग्य से जैन लोग भी उसे समझ नहीं सके और अपना नहीं सके। चींटी की हिंसा, पानी की हिंसा तो उन्हें दिखाई दी किन्तु एक व्यक्ति के साथ भयंकर क्रूरता को हिंसा नहीं माना। झूठा तोल माप न करना, मिलावट न करना, अशुद्ध साधनों से धनार्जन न करना उसके व्रत थे किन्तु उन सबको विस्मृत कर दिया। अहिंसा का विकृत रूप अपनाकर अनास्था पैदा की। आज पुन: अपेक्षा है उस जीवन शैली को व्यवहार्य बनाया जाये। श्रावक व्रतों पर आधारित समाज व्यवस्था को स्वस्थ समाज की अभिधा से अभिहित किया जा सकता है। राजनीति में अनेकान्त राजनीति समाज व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण घटक है। उसकी अदूरदर्शिता के परिणाम समाज को लम्बे समय तक भुगतने पड़ते हैं। राजनीति में विचारधाराओं में पक्ष-प्रतिपक्ष होता है। वस्तु का अस्तित्व विरोधी धर्मों के बिना होता ही नहीं है। एक ही वस्तु में विरोधी युगलों का रहना प्राकृतिक नियम है। आज जो शान्तिपूर्ण सह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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