Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
438
Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
कौटिल्य ने भी अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए कहा - केवल कठोर दण्ड देने वाला शासक जनता में क्षोभ उत्पन्न करता है तथा मृदुदण्ड देने वाले शासक की जनता अवहेलना कर देती है। अत: उचित प्रतिकार अपेक्षित है। भवभूति अनेकान्त की भाषा में राम के अनुशासन का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं- 'बज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि' कठोरता और मृदुता का समन्वय अनेकान्त दृष्टि से ही संभव है।
दूसरा विरोधी युगल है श्रद्धा और तर्क। केवल श्रद्धा अंधी होती है और कोरा तर्क पंगु। यदि अनुशास्ता अपने सदस्यों में इन दोनों का समन्वय नहीं कर पाता तो वह अकाल में ही संगठन को छिन्न-भिन्न कर डालता है। क्योंकि कोरी श्रद्धा में समर्पण तो होता है परंतु उससे जड़ता होगी, चापलूसी पनपेगी तथा कोरे तर्क में बौद्धिकता होगी पर हृदय नहीं होगा।
___ अत: अनेकान्त कहता है कि भाव व बुद्धि के वैषम्य को मिटाया नहीं जा सकता पर समन्वय साधा जा सकता है। अत: अनुशास्ता का कर्तव्य होता है कि श्रद्धा प्रवण व्यक्तियों की बुद्धि को तीक्ष्ण करे और तर्क प्रवण व्यक्तियों को समर्पण की यथार्थता का बोध कराए। अनेकान्त दृष्टि ही अनुशास्ता के व्यक्तित्व में निश्चय व व्यवहार का समन्वय कर सकती है। केवल निश्चयनय व्यक्ति को अव्यावहारिक बना देता है तथा केवल व्यवहार अन्तर्दृष्टि विमुख। अत: नेता यदि इन दो दृष्टियों से व्यवहार नहीं चलाएगा तो वह अनुयायियों के साथ घुल मिल नहीं पाएगा तथा श्रद्धा पात्र भी नहीं बन सकेगा।
आचार्य भिक्ष ने अपने धर्मसंघ में एकतंत्र व जनतंत्र के समन्वय का प्रयोग किया। तेरापंथ धर्मसंघ में एक आचार्य की आज्ञा सर्वोपरि होती है। किंतु आचार्य कोई भी नया निर्णय अपने साधु साध्वियों के परामर्श से ही करते हैं तथा प्रत्येक साधु साध्वी को अपने विचारों को प्रस्तुत करने तथा विकास करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
अतः इन प्रत्यक्ष विरोधी दिखने वाले युगलों का समन्वय शासक की क्षमता को तो बढ़ाता ही है, साथ ही संगठन की तेजस्विता भी बढ़ती है। समन्वय का यही हार्द है कि विरोधी से विरोधी विचारों में अपेक्षाभेद से सत्य का दर्शन करा दिया जाए। अत: अनेकान्त दो सच्चाइयों के बीच का सेतु है। सह-अस्तित्व
विरोध का उत्तर विरोध- यह अनेकान्त नहीं है वहां तो विरोधों का सहावस्थान होता है। समाज अनेक व्यक्तियों की इकाई का समाहार है। सबकी रुचियां, खान-पान, रहन-सहन, ज्ञान, बुद्धि आदि एक से नहीं होते। अत: सबका सह अस्तित्व समस्या बन जाता है। किंतु नेतृत्व करने वाला यदि इस बात में विश्वास करता है कि विरोधी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org