Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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440 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda के बारे में कोई निर्णय मत लो क्योंकि मनुष्य की दुर्बलता है कि वह सब पर्यायों को नहीं जानता। भविष्य में अन्य पर्यायों का आविर्भाव भी संभव है। यह दृष्टि यदि अनुशास्ता में नहीं होती तो वह अनुयायी में सोयी अनंत संभानवाओं को नहीं देख सकता। आज मंदबुद्धि और सामान्य लगने वाला व्यक्ति भविष्य में महान् दार्शनिक और तत्त्ववेत्ता भी बन सकता है । सापेक्षता
संसार का हर पदार्थ एक दूसरे से सापेक्ष है, यह अनेकान्तदृष्टि अनुशास्ता को दूसरे के विरोधी विचार में भी अविरोध देखने की दृष्टि प्रदान करती है। निरपेक्ष शासक केवल अपने दृष्टिकोण से ही दूसरे की बात सुनेगा इसलिए दूसरे के हितकारी सुझाव को भी मान्य नहीं कर पाएगा। अत: सापेक्ष दृष्टि अनुयायी के कथन की अपेक्षा को समझ कर उसे सही मार्गदर्शन दे सकती है।
सापेक्षता विनम्रता की जन्मदात्री है। विनम्र व्यक्ति ही सत्य का साधक और दूसरे की अच्छाई को ग्रहण कर सकता है। वैचारिक धरातल पर जब सापेक्षता का अवतरण होता है तब नेता की संकीर्णता और आग्रहवृत्ति ये दोनों अवगुण पलायन कर जाते हैं।
अनुशास्ता एक संगठन को साथ लेकर चलता है अत: वह व्यवस्थासूत्र को ही नहीं संभालता किंतु उस संगठन के दर्शन और उद्देश्य को भी सुरक्षित रखता है। निरपेक्ष व्यक्ति विरोधी मत की उपादेयता से लाभ नहीं उठा सकता।
अतः अनेकान्त दृष्टि ही नेता का मार्गदर्शन करती है कि एक विचार दूसरे विचारों से सापेक्ष होकर ही सत्य हो सकता है, निरपेक्ष होते ही असत्य हो जाता है। सापेक्षता के बिना सिद्धान्तों का सही पालन भी और अवबोध भी नहीं हो सकता। एक व्यक्ति सिगरेट बहुत पीता था। उसे जब सिगरेट को स्वास्थ्य का शत्रु बताया गया तो वह बोला-ईसा ने कहा शत्रु से भी प्यार करो इसीलिए मैं सिगरेट पीता हूँ। सापेक्षता के अभाव में ही ऐसी तथ्यहीन बात कही जा सकती है।
सापेक्ष चिन्तन ही अनुशास्ता में यह उदार भाव भरता है कि अनुयायी हमेशा अनुयायी न रहे वह स्वयं स्वतंत्र हो जाए। महावीर इसके बड़े प्रयोक्ता थे। उन्होंने कहा हर भक्त भगवान बन सकता है यदि वह अपनी स्वतंत्र चेतना जगा ले। समता और सहिष्णुता
अनेकान्त का पर्याय है - समता, वीतरागता। समता अनुशासन का प्राण है। आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं अनेकान्त तीसरा नेत्र है और वह समता है। यदि अनुशास्ता
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