Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 508
________________ अनेकान्तवाद और नेतृत्व 443 को इसे व्यवहार में भी लागू करना पड़ता हैं। यदि वह अपेक्षा देखकर गौण को मुख्य और मुख्य को गौण नहीं बनाएगा तो समाज में सक्रियता नहीं आ सकेगी। मुख्य यदि सदैव मुख्य बना रहेगा तो अन्य प्रतिभाओं को उभरने का मौका नहीं मिलेगा तथा विकास का द्वार बंद हो जाएगा। इसी प्रकार मुख्य यदि गौण नहीं बनेगा तो उसके अहंकार को तोड़ना मुश्किल हो जाएगा। समय के अनुसार जहां जिसकी अपेक्षा हो, उसे वहीं नियुक्त करना नेतृत्व की सफलता का सूत्र है, पर यह निर्णय संकीर्णता और एकांगिता से संभव नहीं है। अत: सही समय पर सही निर्णय अनेकान्त द्वारा ही संभव नेतृत्व की दृष्टि से सभी क्षेत्रों में अनेकान्त को व्यवहार में लाने की अपेक्षा है। आज का धार्मिक नेतृत्व केवल एकान्तिक दृष्टि पर आधारित है, इसीलिए साम्प्रदायिक वैमनस्य का विष तेजी से बढ़ रहा है। अनेकान्त ही यह उदार दृष्टि दे सकता है कि मन्दिर ही नहीं गिरजाघर भी सत्य हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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