Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 506
________________ अनेकान्तवाद और नेतृत्व 441 राग और द्वेष से प्रभावित है तो उसका निर्णय और अनुशासन निष्पक्ष नहीं रह सकेगा। द्वेष की प्रबलता में छोटी गलती भी बड़ी नजर आएगी तथा राग के आधिक्य में अनुयायी की बड़ी गलती भी छोटी लगेगी। ऐसी स्थिति में समूह में दलबंदी और विप्लव की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। अत: आज के समाजशास्त्रियों ने नेतृत्व का सबसे बड़ा गुण तटस्थता माना है। राजनैतिक नेतृत्व भाई भतीजावाद और पार्टीबाजी के कारण कलंकित हो रहे हैं। संतुलित जीवन जीने के लिए वैयक्तिक स्तर पर भी अनुशास्ता को समता से भावित होना आवश्यक है क्योंकि अनुशासन करने पर भी अनुगामी पर उसकी प्रतिक्रिया दो प्रकार की हो सकती है - हियंत तं मण्णए पण्णो वेस होई असाहणा। एक उसे हितकर मानता है और दूसरा इसके विरोध में अपनी तीव्र प्रतिक्रिया भी अभिव्यक्त कर सकता है। उस स्थिति में अनुशास्ता की कसौटी होती है कि वह स्वयं शान्त रहकर अनुशासन की हितकारिता का स्पष्ट अवबोध कराए, तथा यह भी बोध कराता रहे कि यह कटक औषधि पीड़ित करने के लिए नहीं अपितु रोगमुक्त करने के लिए दी गयी है। प्रतिकूल परिस्थिति में अनेकान्त यह विवेक देता रहता है कि एक ही क्रिया का परिणाम एक जैसा होना अनिवार्य नहीं है। अमुक व्यक्ति मेरी बात नहीं मानता तो उसके सामने भी कोई विवशता होगी। सापेक्ष चिन्तन अनुशास्ता के संतुलन को बनाए रख सकता है। शासक यदि समता से अनुप्राणित नहीं है तो प्रशंसा में फूल जाएगा और निंदा में कुम्हला जाएगा। साम्ययोग से भावित शास्ता आंतरिक और बाह्य द्वन्द्वों में मानसिक संतुलन बनाए रखता है। अनेकान्त गुड़ और गोबर को एक समझने की समता या साम्य की बात नहीं कहता पर गुड़ के प्रति राग और गोबर के प्रति द्वेष दूर कर उनके अपने क्षेत्रों में दोनों की उपयोगिता को स्वीकृति देता है और यही साम्ययोग या समता है। _ अनेकान्त सहिष्णुता का जन्मदाता है क्योंकि हर प्रतिकूल परिस्थिति में विधायक चिंतन बनाए रखने के कारण वह व्यक्ति को उत्तेजित नहीं होने देता। नेता यदि सहिष्णु और परिस्थिति से अप्रभावित नहीं होगा तो वह समूह के मनोबल को भी बनाए नहीं रख सकेगा। कष्ट की स्थिति में भी अनेकान्त यह चिन्तन देता है कि सर्दी गर्मी को नहीं मिटाया जा सकता पर उन्हें प्रसन्नता से सहा जा सकता है। महावीर ने इसी दृष्टि से इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों का समता से सामना किया। लचीलापन आज के समाजशास्त्री नेता का सबसे बड़ा गुण लचीलापन मानते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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