Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 465
________________ 400 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda साधेगे? क्योंकि विधि-प्रतिषेधरूपपना समान है और इसलिए जिनकी एक जगह एक साथ कथंचित् उपलब्धि होती है, उनमें विरोध नहीं आता है। हाँ, यदि जिस रूप से अस्तित्व माना जाता है, उसी रूप से नास्तित्व कहा जाता तो उन सर्वथा एकान्तरूप अस्तित्व नास्तित्व धर्मों के ही एक साथ एक जगह रहने में विरोध होता है - कथंचित् में नहीं२९। छह द्रव्यों में परिणमन अनादि अनन्त द्रव्य में अपनी-अपनी पर्यायें प्रतिक्षण उत्पन्न होती रहती हैं और विनशती रहती हैं, जैसे जल में लहरें उत्पन्न होती रहती हैं और विनशती रहती हैं। धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश द्रव्य और कालद्रव्य इन चारों द्रव्यों में अर्थपर्याय ही होती है, किन्तु इनसे भिन्न जीव और पुद्गल इन दोनों द्रव्यों में व्यञ्जन पर्यायें भी होती हैं। जीव परिणाम युक्त है; क्योंकि उसका स्वर्ग, नरक आदि गतियों में नि:संदेह गमन पाया जाता है। इसी प्रकार पाषाण, मिट्टी आदि स्थूल पर्यायों के परिणमन देखे जाने से पद्गल को परिणामी जानना चाहिए। धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश द्रव्य, कालद्रव्य ये चारों द्रव्य व्यंजन पर्याय के अभाव से यद्यपि अपरिणामी कहलाते हैं तथापि अर्थपर्याय की अपेक्षा ये द्रव्य परिणामी हैं; क्योंकि अर्थपर्याय सभी द्रव्यों में होती है३२१ पदार्थ में रहने वाले प्रदेशत्व गण के अतिरिक्त अन्य गणों में प्रतिसमय जो सूक्ष्म परिणमन होता है, उसे अर्थपर्याय कहते हैं। यह परिवर्तन अत्यन्त सूक्ष्म होता है एवं हमारी दृष्टि में नहीं आता है। पदार्थ के आकार में जो परिणमन होता है, उसे व्यंजन पर्याय कहते हैं। चूंकि किसी भी पदार्थ का आकार उसमें रहने वाले प्रदेशत्व गुण के कारण होता है; क्योंकि प्रदेशत्व गुण वह है, जिसके कारण वस्तु किसी न किसी आकार में ही रहे। अतः हम कह सकते हैं कि प्रदेशत्व गुण के कार्य (परिवर्तन) को व्यञ्जन पर्याय कहते हैं। वस्तु का समत्वभाव आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है - "दीपक से लेकर आकाश पर्यन्त अर्थात् समस्त पदार्थ समान स्वभाव के धारक हैं; क्योंकि सब पदार्थ स्याद्वाद की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते हैं, तथापि उनमें दीपक आदि कितने ही पदार्थ सर्वथा अनित्य हैं और आकाश आदि कितने ही पदार्थ सर्वथा नित्य हैं। इस प्रकार आपकी आज्ञा से द्वेष रखने वालों के प्रलाप हैं३३॥ वैशेषिक ने कहा है कि आकाशादि कुछ पदार्थ नित्य ही हैं और प्रदीप आदि पदार्थ अनित्य ही हैं, उनका खण्डन करने के लिए आचार्य ने कहा है कि सब पदार्थ समान स्वभाव के धारक हैं; क्योंकि सभी पदार्थ द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से नित्य हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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