Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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सप्तभंगी बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में
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तैयार करें, तो वे इस प्रकार होगें
अमला
लाल
पीला काला
नीला
नीला+ पीला = हरा पीला+ वायलेट = लाल वायलेट+नीला = बैगनी
हरा + बैगनी+लाल = काला इस प्रकार तीन मूलभूत रंगों के संयोग के चार ही मिश्रित रंग बनते हैं। इन मिश्रित रंगों का अस्तित्व अपने मूल रंगों के अस्तित्व से भिन्न है। इसलिए इन्हें मूलरंगों के नाम से अभिहित नहीं किया जा सकता है। ठीक यही बात स्याद्वाद के संदर्भ में भी है। यद्यपि सप्तभंगी के उत्तर के चार भंग पूर्व के तीन मूलभूत भंगों के संयोग मात्र से ही हैं, किन्तु वे सभी उक्त तीनों भंगों से भिन्न हैं इसलिए उनके अलगअलग मूल्य हैं। इस प्रकार सप्तभंगी के सातों भंग अलग-अलग मूल्य प्रदान करते हैं। इसलिए सप्तभंगी सप्तमूल्यात्मक है, ऐसा मानना चाहिए।
सप्तभंगी के सातों रंग सात प्रकार के मूल्य प्रदान करते हैं इस प्रकार के विचार आधुनिक तर्कविदों में भी स्वीकृत है। ऐसे विचार विशेष रूप से सांख्यिकी और भौतिक विज्ञानों में प्राप्त होते हैं। प्रो० जी० बी० बर्च ने अपने लेख "Seven-valued Logic in Jain Philosophy" में ऐसे अनेक विचारकों के मन्तव्य को उद्धत किया है, जिन्होने सांख्यिकीय या भौतिकीय सिद्धान्तों के आधार पर सप्तभंगी को सप्तमूल्यात्मक सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। भारतीय सांख्यिकी संस्थान के सचिव प्रो० पी० सी० महलनबिस ने स्याद्वाद की एक संभाव्यात्मक व्याख्या करते हुए कहा है कि स्याद्वाद संभाव्यता का गुणात्मक विचार के लिए एक बौद्धिक आधार प्रदान करता है जो कि सांख्यिकी के गुणात्मक या मात्रात्मक विज्ञान का आधार है। यद्यपि उन्होंने ‘स्यात्' को "हो सकता है" (May be) में और "स्यादस्ति अवक्तव्यम् च” को “यह अवक्तव्य है" और स्यान्नास्ति च अवक्तव्य” को “यह अवक्तव्य नहीं है के रूप में व्याख्यायित
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