Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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भी है -
अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण
जीवादीन् पदार्थान् नयन्ति प्राप्नुवन्ति कारयन्ति साधयन्ति निर्वर्तयंति निर्भासयन्ति उपलम्भयन्ति व्यञ्जयन्तीति नयाः ।
अर्थात् जो जीवादि पदार्थों को लाते हैं, प्राप्त कराते हैं, सिद्ध कराते हैं, बनाते हैं, उनका आभास कराते हैं, उन्हें उपलब्ध कराते हैं और प्रकट कराते हैं वे नय हैं। 'नय' अनेक प्रकार के कारणों में से वस्तु के एक कारण को / एक स्वभाव को / एक अंश को प्राप्त कराता है।
अनेकान्तात्मक प्रयोग नय है
वस्तु में विरोध के बिना कारण की प्रधानता से जो साध्य विशेष की वास्तविकता को प्रकट करने में समर्थ है वह नय है । अनेक गुण, अनेक पर्यायों सहित अथवा उनके द्वारा एक परिणाम से दूसरे परिणाम में, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में और एक काल से दूसरे काल में अविनाशी स्वभाव रूप से रहने वाले द्रव्य को जो ले जाता है या उसका ज्ञान करा देता है, वह नय अनेकान्तात्मक वस्तु का, अनन्तपर्यायात्मक वस्तु की किसी एक पर्याय का ज्ञान करते समय निर्दोष युक्ति की अपेक्षा से दोष रहित प्रयोग करता है। वस्तुनोऽनेकधर्मिणः एकेन धर्मेण नयनं नय: २८ ।”
अर्थात् वस्तु अनेकधर्मी है, परन्तु वस्तु के अनन्त धर्मों में से एक धर्म की ओर ले जाने वाला नय है।
ज्ञाता का अभिप्राय - नय
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“ज्ञातुरभिप्रायो नय: २९। ज्ञाता का अभिप्राय नय है। अभिप्राय प्रमाण गृहीत अर्थ से वस्तु के एक देश को व्यक्त करता है। प्रभाचन्द्राचार्य के अनुसार “अनिराकृत-प्रतिपक्षी वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः ३०।" प्रतिपक्षी अर्थात् विरोधी धर्मों का निराकरण न करते हुए वस्तु / पदार्थ के एक अंश / धर्म को ग्रहण करने वाला ज्ञाता का अभिप्राय नय है। नय वक्ता का अभिप्राय है, जिसमें ज्ञान की प्रामाणिकता होती है। इसमें प्रमाण गृहीत वस्तु का एकदेश प्रतिपादन वक्ता के अभिप्राय को ध्यान में रखकर किया जाता है।
"णादुस्स हिदय-भावत्थो ३१ ।”
ज्ञाता के हृदय के भाव का अर्थ नय है। आचार्य समन्तभद्र ने आप्तमीमांसा में स्याद्वाद एवं अनेकान्त दृष्टि को प्रतिपादित करने वाले एवं हेतु की पुष्टि करने वाले को नय माना है। कहा है।
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सधर्मणैक साध्यस्य साधर्म्यात् अविरोधत: ।
स्याद्वाद प्रविभक्तार्थ - विशेष - व्यंजको नयः ३२॥
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