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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
अनेकान्त और स्याद्वाद का प्रयोग करते समय यह जागरूकता रखना बहुत आवश्यक है कि हम जिन परस्पर विरोधी धर्मों की सत्ता वस्तु में प्रतिपादित करते हैं, उनकी सत्ता वस्तु में संभावित है भी या नहीं। अन्यथा कहीं हम ऐसा न कहने लगें कि कथंचित् जीव चेतन है कथंचित् अचेतन भी । अचेतनत्व की जीव में संभावना नहीं है । अत: यहां अनेकान्त बताते समय अस्ति और नास्ति के रूप में घटाना चाहिए- जैसे जीवन चेतन ही है, अचेतन नहीं ।
वस्तुतः चेतनत्व और अचेतनत्व तो परस्पर विरोधी धर्म हैं और नित्यत्वअनित्यत्व परस्पर विरोधी नहीं, विरोधी-से प्रतीत होने वाले धर्म हैं। वे परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं, परन्तु हैं नहीं। उनकी सत्ता द्रव्य में एक साथ पाई जाती है। अनेकान्त परस्पर विरोधी से प्रतीत होने वाले धर्मों का प्रकाशन करता है। अनेकान्त की खोज का उद्देश्य और उसके प्रकाशन की शर्ते
वस्तु का पूर्ण रूप में त्रिकालाबाधित-यथार्थ दर्शन होना कठिन है, किसी को वह हो भी जाय तथापि उसका उसी रूप में शब्दों के द्वारा ठीक-ठीक कथन करना उस सत्यद्रष्टा और सत्यवादी के लिए भी बड़ा कठिन है । कभी उस कठिन काम को किसी अंश में करनेवाले निकल भी आएं तो भी देश, काल परिस्थिति, भाषा और शैली आदि के अनिवार्य भेद के कारण उन सबके कथन में कुछ न कुछ विरोध या भेद का दिखाई देना अनिवार्य है। यह तो हुई उन पूर्णदर्शी और सत्यवादी इने-गिने मनुष्यों की बात, जिन्हें हम सिर्फ कल्पना या अनुमान से समझ या मान सकते हैं।
हमारा अनुभव तो साधारण मनुष्यों तक परिमित है और वह कहता है कि साधारण मनुष्यों में भी बहुत से यथार्थवादी होकर भी अपूर्णदर्शी होते हैं। ऐसी स्थिति में यथार्थवादिता होने पर भी अपूर्ण दर्शन के कारण और उसे प्रकाशित करने की अपूर्ण सामग्री के कारण सत्यप्रिय मनुष्यों की भी समझ में कभी-कभी भेद आ जाता है और संस्कार भेद उनमें और भी पारस्परिक टक्कर पैदा कर देता है। इस तरह पूर्णदर्शी और अपूर्णदर्शी सभी सत्यवादियों के द्वारा अन्त में भेद और विरोध की सामग्री आप ही आप प्रस्तुत हो जाती है या दूसरे शब्दों में दूसरे लोग उनसे ऐसी सामग्री पैदा कर लेते हैं।
ऐसी वस्तु स्थिति देखकर भगवान महावीर ने उस मिली हुई अनेकान्तदृष्टि की चाभी से वैयक्तिक और सामष्टिक जीवन की व्यावहारिक और पारमार्थिक समस्याओं के ताले खोल दिये और समाधान प्राप्त किया। तब उन्होंने जीवनोपयोगी विचार और आचार का निर्माण करते समय उस अनेकान्त दृष्टि को निम्नलिखित मुख्य शर्तों पर प्रकाशित किया और उनका अनुशरण कर उन्हीं शर्तों पर उपदेश दिया। वे शर्ते इस
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