Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अनेकान्तवादः एक मनोवैज्ञानिक विवेचन
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में प्रेक्षक यह जानना चाहता है कि छात्र के हंसने की यह क्रिया छात्र के विषय में क्या बताती है। सर्वप्रथम तो उसे यहाँ निर्धारित करना होगा कि छात्र के हंसने का कारण क्या हो सकता है? क्या वह अपने हंसमुख स्वभाव तथा हास्य के प्रति अधिक संवेदनशीलता के कारण हंसा अथवा वह चुटकुला ही इतना हास्यपूर्ण था कि उससे हंसी नहीं रुकी । यदि यह निर्धारित हो जाता है कि छात्र अपने हंसमुख स्वभाव तथा हास्य के प्रति अपनी अधिक संवेदनशीलता के कारण हंसा तभी उसके व्यक्तित्व का गुणारोपण (Attribution) प्रेक्षक द्वारा हो पायेगा अन्यथा नहीं। केली के अनुसार ऐसे गुणारोपण करते समय प्रेक्षक कई बातों पर विचार करता है -
१. क्या वह छात्र अन्य सभी चटकलों को पढ़ते समय हंसता है अथवा केवल उसी चुटकले को पढ़ते समय हंसा था? यदि वह सभी चुटकुलों को पढ़ते समय हंसता है तो उस चुटकले को पढ़ते समय भी उसके हंसने का कारण उसका हंसमुख व्यक्तित्व तथा उसकी हास्य के प्रति संवेदनशीलता है। परन्तु, वह यदि केवल उसी चुटकुले को पढ़कर हंसता है, अन्य चुटकुलों को पढ़ते समय नहीं, तो उसके हंसने का कारण वह चुटकुला परिस्थितिजन्य वातावरणीय कारक है, छात्र का व्यक्तित्व नहीं।
२. क्या सभी छात्र उस चुटकले को पढ़कर हंसते हैं? यदि "हाँ" तो उस छात्र के हंसने का कारण वातावरण ही है उसका व्यक्तित्व नहीं, लेकिन यदि "नहीं" तो उसके हंसने का कारण व्यक्तित्व ही है।
३. क्या उसी' स्तर के सभी चुटकुले को किसी अन्य दिन पढ़कर भी छात्र हंसता है? यदि नहीं, तो हंसने का कारण उसका व्यक्तित्व नहीं वरन कोई क्षणिक कारण रहा होगा। ये तीन बिन्दु गुणारोपण में अनेकान्त दृष्टि को स्पष्ट बताते हैं।
गुणारोपण के अतिरिक्त भीड़ व्यवहार पर अध्ययन भी अनेकान्त दृष्टि के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालते हैं। अपने एक अध्ययन में चौबे (१९९२) ने पाया कि एक ही प्रकार के बहुमंजिले भवनों में रहने वाले लोग भीड़ की अलग-अलग मात्रा महसूस करते हैं। कुछ ने भीड़ की मात्रा को अत्यधिक, कुछ ने कम, कुछ ने सामान्य तथा कुछ ने कहा कि भीड़ है ही नहीं। जबकि कुछ ने इस ओर इंगित किया कि वे इस विषय में कुछ नहीं कह सकते।
मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों में पाया कि प्राय: पूर्व सूचना के कारण व्यक्ति पूर्वाग्रहों से युक्त निर्णय लेता है। ब्रिट (१९५०) के अनुसार “पूर्वग्रहीत निर्णय शब्द का वास्तविक अर्थ अपरिपक्व अथवा पक्षपात पूर्ण मत से है।"
" The word 'prejudice' actually means a premature or biased opinion."
___ - Britt (1950)
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