Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण
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२. सादि नित्य पर्यायार्थिक नय
कम्मखयादुप्पणो अविणासी जो हु कारणाभावे । इदमेवमुच्चरंतो भण्णइ सो साइणिच्च णओ७।।
जो पर्याय कर्मों के क्षय होने के कारण सादि हैं तथा विनाश का कारण न होने के कारण अविनाशी हैं, ऐसी सादि नित्य पर्याय को ग्रहण करने वाला यह नय है। कुछ ऐसी भी पर्यायें होती हैं, जो सादि हैं, नित्य हैं जैसे- सिद्ध पर्याय। जीव की सिद्ध पर्याय कर्मों के क्षय से उत्पन्न होती है, क्योंकि सिद्ध, बुद्ध, मुक्त जीव बाह्य और आभ्यन्तर कर्म कलंक से मुक्त हैं, उनमें पुन: विकार/कलंक/राग द्वेष भाव उत्पन्न होने का कारण नहीं है, इसलिए सादि होते हुए भी वह नित्य है। ३. अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिकनय
सत्ता अमुक्खरूवे उप्पाद-वयं हि गिण्हए जो हु।। सो हु सहावाणिच्चो गाहो खलु सुद्ध-पज्जाओ ।।
जो सत्ता को गौण करके उत्पाद-व्यय को ग्रहण करता है ऐसा अनित्य स्वभाव को ग्रहण करने वाला वह नय है। सत् उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य सहित होता है। द्रव्य का लक्षण 'सत्' है, जो उत्पाद/उत्पत्ति, व्यय/विनाश और ध्रौव्य/ नित्य इन तीन गुणों से युक्त होता है। प्रत्येक वस्तु प्रतिसमय उत्पन्न होती है; नाश को प्राप्त होती है और वह सदैव नित्य भी रहती है। परन्तु इस नय में वस्तु के नित्यपने को छोड़कर उत्पाद और व्यय इन दो पर्यायों को विषय बनाया जाता है, जैसे- पर्याय प्रतिसमय विनाश को प्राप्त होती है। ४. अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय
जो गहइ एयसमए उप्पादव्वय-धुवत्तसंजुत्तं। सो सवभावाणिच्चो असुद्ध-पज्जत्थिओ णेओ९।।
जो एक समय में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त पर्याय को ग्रहण करता है वह स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है। इस नय में एक ही साथ उत्पाद,व्यय और ध्रौव्य को विषय बनाया जाता है । ५. कर्मोपाधि निरपेक्ष अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय
यह नय संसारी जीवों की पर्याय को सिद्धों के समान शुद्ध कहता है। संसारी जीवों की पर्याय अशुद्ध ही है, क्योंकि वह कर्मों से आसक्त है, विषयासक्ति जन्य है। कर्म की उपाधि/कर्मावरण बिना जीव शुद्ध पर्याय को प्राप्त नहीं होती है। किन्तु यह नय उस उपाधि की अपेक्षा न करके संसारी जीव की पर्याय को सिद्धों के समान शुद्ध कहता है।
“सिद्ध-पर्याय-सदृशाः शुद्धाः संसारीणां पर्याया:५०।"
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