Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अनेकान्त:स्वरूप और विश्लेषण
डॉ० उदयचंद जैन
जेण विणा लोगस्स वि, ववहारो सव्वहा ण णिव्वडइ ।
तस्स भुवणेक्कगुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स ।।
जिसके बिना लोक/संसार का व्यवहार पूर्ण रूप से नहीं चल सकता है, उस सम्पूर्ण लोक के एक मात्र गुरु अनेकान्तवाद को नमन है।
___ अनेकान्त जीवन है, लोक-व्यवहार एवं परस्पर वैचारिक व्यापार का जीवन्त प्राण है, आदर्श नेता है एवं व्यक्तित्व विकास तथा राष्ट्रीय उन्नति का सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। मानवीय मूल्यों की स्थापना, प्राणिमात्र के संरक्षण के साथ यह उन सभी का संरक्षण करता है, जो प्रकृति से जुड़े हुए हैं। यह एक ऐसा विचारात्मक गुरु है जो सबकी सोचता है, सबकी सुनता है, सबको देखता है, सभी को कहने का अवसर देता है, ग्रन्थि सुलझाता है, ग्रन्थि खोलता है, आपसी मनमुटाव तोड़ता है और एक-दूसरे को जोड़ता है। यही इसकी प्रमुख सामाजिक भूमिका है।
अनेकान्तवाद जैनदर्शन का प्राण है। प्रत्येक वस्तु के केन्द्र में अनेकान्त होता है। उसका एक-एक गुण, उसकी एक-एक पर्याय और उसका एक-एक स्वरूप अनन्त धर्मों, गुणों को स्वीकार करके ही अपने इष्ट पथ को प्रदर्शित करने वाला है। जिस समय आग्रह के वशीभूत होकर व्यक्ति एक दूसरे के गुणों के प्रति दुराग्रह भावना से अपनी बात पर ही बल देने लगता है, उस समय वह सत्य से हटकर भटकाव को आमन्त्रण दे उठता है, उसका परिणाम यह होता है कि हम एक दूसरे से अपने को अलग समझने लगते हैं। संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है, विकास की जगह ह्रास जन्म ले लेता है, मिलाप की जगह तनाव उभरकर सामने आ जाता है। परिस्थितियों में प्रतिकूलता आते ही सामाजिक बदलाव राष्ट्र का बाधक तत्त्व बन जाता है। फिर विनाश ही विनाश के बादल मंडराने लगते हैं।
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