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द्वावशानप्रेक्षाधिकारः देवाश्चासुराश्च मनुष्याश् व देवासुरमनुष्यास्तेषां ऋद्धिविभूनिर्दस्त्यश्व र थपदातिद्रव्यसुवर्णादिकामा पूर्वावस्यायः अतिरेकः, सोख्यानि शुभद्रव्येन्द्रियजनितानंदरूपाणि । माता मनी, पिता जनकः स्वजना बान्धवा मवासतास्त: सहकत्रावस्थानं । प्रीतिरपि तैः सह स्नेहोऽपि । अनित्या इति संबंधः । एतानि सर्वाणि स्थानादीन्यनित्यानि नात्र शाश्वतरूपा बुद्धिः कर्त्तव्येति ॥६६५।।
तथा--
सामग्गिदियरूवं मदिजोवणजीवियं बलं तेज ।
गिहसयणासणभंडादिया अणिच्चेति चितेज्जो ॥६६६॥ सामग्री राज्यगृहाद्युपकरणं हाहस्तिरथपदातिखङ्ग कुंतलपरशुबीजकोशादीनि, इन्द्रियाणि चक्षुरादीनि. रूपं गौरवर्णादिरमणीयता, मतिर्बद्धिः पूर्वाप रविचनं, यौवनं द्वादशवर्षेभ्य उर्ध्व वय:परिणाम:, जीवितमायः, बलं सामर्थ्य, तेजः शरीरकान्तिः प्रतापो वा, पुरुषैरानीतानन गहन्तीति गहाः स्त्रियस्तसहचरितप्रासादादयश्च, शयनानि तूलिकापर्यंकादीनि सुखकारणानि, आसनानि वेत्रासनपीटिकादीनि सूखहतूनि शरीरादीनि वा पुत्रमित्रदासीदासादीनि च, भांडादीनि च शंठिमरिचहिंगवस्त्रकर्षासरूप्यताम्रादीनि मलनित्यानि अध्र वाणि इत्येवं चिन्तयेत् ध्यायेदिति ।।६६६॥
अर्थ यहाँ लेना चूंकि आगे गाथा में 'आसण' शब्द से 'आसन' अर्थ लिया है। देवों के. असुरों के और मनुष्यों के हाथी, घोड़ा, रथ, पदाति, द्रव्य और सुवर्ण आदि विभूति का पूर्व अवस्था से अधिक हो जाना ऋद्धि है । शुभद्रव्यों के द्वारा इन्द्रियों से उत्पन्न हुआ जो आनन्द है वह सोख्य है। माता-पिता व स्वजन-बन्धवर्ग के साथ में एकत्र निवास होना संवास है। तथा इनके स्नेह का नाम प्रीति है। इस तरह स्थान, आसन, नानावैभव, सख, स्वजनों का संवास और स्नेह,ये सब अनित्य -क्षणिक हैं, शाश्वतरूप नहीं हैं ऐसी बद्धि करना ।
उसी प्रकार से और भी कहते हैं
गाथार्थ- सामग्री, इन्द्रियाँ, रूप, बुद्धि, यौवन, जीवन, बल, तेज, घर, शयन, आसन, और वर्तन आदि सब अनित्य हैं ऐसा चिन्तवन करे ।।६६६॥
आचारवृत्ति--राज्य के या घर के उपकरण-घोड़ा, हाथी, रथ, पदाति, खड्ग, भाला, कुल्हाड़ी, धान्य और कोश ये सामग्री कहलाते हैं। चक्षु आदि इन्द्रियाँ हैं। गौरवर्ण आदि की रमणीयता रूप है। पूर्वापर विवेक रूप बुद्धि का नाम मति है । बारह वर्ष से ऊपर की उम्र का परिणाम यौवन है। आयु का होना जोवन है। सामर्थ्य को बल कहते हैं। शरीर को कान्ति अथवा प्रताप का नाम तेज है। पूरुपों द्वारा लाये हए अर्थ को 'गह णन्ति इति गहा.' जो ग्रहण करते हैं वे गह हैं इस लक्षण से स्त्रियाँ भी गह हैं, तथा उनसे सहचरित महल आदि भी गह है। गहे. पलंग आदि सख के कारणभत शयन है। सख के इतक वेत्रासन, पीठ आदि आसन हैं। अथवा शरीर आदि या पुत्र, मित्र, दासी, दास आदि 'आसन' शब्द से विवति है । सांठ, मिर्च, होंग, वस्त्र, कपास, चाँदी, तांबा आदि सभी वस्तुए भाँड शब्द से कहो जाती हैं ! ये उपयुक्त राज्यादि के उपकरण, इन्द्रियाँ, सुन्दररूप, विवेक, यौवन, जीवन, शक्ति, तेज, घर या स्त्रियाँ, शयन, आसन ओर भाँड आदि सभी क्षणभंगुर हैं-इस प्रकार से ध्यान कर । यह अनित्य भावना है।
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