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विषय पृ. सं. विषय
पृ. सं. ज्ञानशुद्धिका वर्णन ..... २९९ द्रव्यक्षेत्रकालभावशुद्धिका व. ३३८ उज्झनशुद्धिका वर्णन .... ३०२ कुत्सिताचारके संसर्गका वाक्यशुद्धिका वर्णन ___.... ३०७ (संगतिका) निषेध .... ३४१ तपशुद्धिका वर्णन .... ३१० जो संघको छोड स्वेच्छाचारी ध्यानशुद्धिका वर्णन .... ३१४, हो शिक्षा नहीं मानता अनगारभावनाकी महिमा- | उसको पापश्रमण कहा है ३४३
कथन .... .... ३१९ जो पहले शिष्य न होकर समयसाराधिकार ।१०। (१२४) आचार्यपना करनेको मंगलाचरण, समयसार नाम
फिरता है उसको पापश्रचारित्रका है .... ३२१
मण कहा है .... ३४३ तथा वैराग्यका नाम समयसार
खाध्यायका माहात्म्य वर्णन ३४६ . कहा है .... .... ३२२
ध्यानका विस्तारसे वर्णन .... ३४७ चारित्ररहितज्ञान निरर्थक कथन३२३
जीवके द्रव्यगुणपर्यायका वर्णन ३४९ संयमरहित लिंग निरर्थक है ३२४
कषायका निषेध वर्णन .... ३५१ सम्यक्त्वरहित तपनिरर्थक है ३२४ ध्यानका माहात्म्य वर्णन .... ३२४
जिह्वा उपस्थका निषेध वर्णन ३५२
ब्रह्मचर्यके भेदोंका वर्णन .... ३५४ आचेलक्य लोंच व्युत्स्टष्ट शरी
भावलिंगका वर्णन .... ३५९ रता प्रतिलेखन ऐसे चारप्रकार लिंगकल्पका वर्णन ३२६ ।
शीलगुणप्रस्ताराधिजो पिंडशुद्धि उपधिशुद्धि
कार ।११। (२६) शय्याशुद्धि नहीं करते हैं मंगलाचरणकार शीलगुण
उनका निषेध कथन .... ३२९/ कहनेकी प्रतिज्ञा .... ३६१ जो अधःकर्मकर भोजन करते अठारह हजार शीलके
हैं उनका अत्यंत निषेध भेदोंका वर्णन .... ३६१ . है उनको मुनि श्रावकरूप चौरासीलाख उत्तरगुणोंके
दोनों धर्मोंसे रहित कहा है ३३१ भेदवर्णन .... .... ३६३