Book Title: Mandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Author(s): Hansvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ प्रस्तावना. वन्दे वीरमानन्दम् । स्वैर्द्रव्यैर्जिनमन्दिराणि रचयत्यभ्यर्चयत्यर्हतविभक्त्या यतिनां तनोत्युपचयं वस्त्रानपानादिभिः। धत्ते पुस्तकलेखनोद्यममुपष्टनाति साधर्मिकान् , दीनाभ्युद्धरणं करोति कलयत्येवं सुपुण्यार्जनम् ॥१॥ इ स अगाध संसार सागरमें अनेक जी we वात्मा एक भवावतारी हैं, अन्य दो भवों में संसार पार होने वाले हैं, कीतनेही जीव तीसरे भवमें अनादि कालकी डगमगाती हुई अपनी नय्याको पार लगानेका शाही परवाना ले चुके हैं । एवं कोई संख्य जन्मों में और कई असंख्य जन्मों में मोक्ष पद पाने के अधिकारी बन चुके हैं । इतनी शीघ्रता और आसानीसे जीवात्मा धम सामग्रीको सेवनासे हो इस अपार संसारसे पार हो सकता है । धर्मको सामग्री में कतिपय अंग वह हैं जिनका कि नामनिर्देश ऊपर किया गया है। मतलब कि कइ भव्यात्मा जिनमंदिरोंके बनवानेसे तथा उनका उद्धार कराने से संसार पारगामी हुए हैं, अर्थात् मुलभ बोधि होकर उत्तरोत्तर उन्नत

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112