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हिये कि, सदाकाल किसी भी मनुष्यकी या देशको परिस्थिति एक जैसी नहीं रहती है । आज सुनते हैं कि, पश्चिम देशमें दश करोडका मालिक एक सामान्य हालत वाला कहा जा सकता है। तारीख ९ अगष्ट १९२३ के जैन पत्र (भावगनर-काठियावाड ) से पता चला है कि, अमेरिकन जॉन डेविड्सन शेक फॅलरकी आमदनी आजसे वीस वर्ष पहले वार्षिक दश करोड डॉलर थी ! आज तो न जाने कितनी बढी या घटी होगी ?। आज काल हिन्दुस्तानके पोछे दुर्व्यसन थोडे नहीं लगे हुए हैं ! हिंदुस्थानको तो प्रायः व्यसनोंने ही नष्ट भ्रष्ट कर दिया है ! कुछ महीने पहले लाहौर (पंजाब)के एक उर्दू पत्र में लिखा मुना था कि, हिन्दुस्थानी लोग गत ११ वर्षों में डेढ अरबकी शराब पी गये ! कहिये वह डेढ अरब रुपया हिंदका ही स्वाहा हो गया न ? ऐसी तो फजूल खरची इतनी बढ़ गई हैं कि, जिसके उल्लेखका एक बडा भारी पोथा सा बन सकता है ? दिग्दर्शन मात्र देखनेकी इच्छा होवें तो "भारतदुर्भिक्ष" नामा पुस्तक देख लेना, आशा है उसके पढनेसे थोडी घनोतो कुंभ करणकी नींद अवश्य खुलेगी!