Book Title: Mandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Author(s): Hansvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 51
________________ मांडवगढकाम-त्री ११ । * लदमी का गर्व कनी नहीं करना चा हिये क्योंकि लदमोका स्वनाव स्थिर नहीं है यह चंचलास्त्री के समान एक को डोम कर दूसरे के पास जायाही करती है इस लिये अपने वैनवका मद किसीको नहीं करनाचाहिये ऐसा कह कर गुरुमहाराजने पेथमकुमार को कहा कि नाई ! तुम पञ्चम अणुव्रतको ग्रहण करो यह व्रत तुमको इस लोक और पर लोक में हितकारी होगा इत्यादि। यह उपदेश सुन कर पेथमकुमार बीसहजार रुपयों का परिमाण करने लगा तब उसके हाथ में अहीर अबी रेखाएं दिखपमने से आचार्य * महाराज ने पांच लाख रुपयों का परि माण व्रत करवाया और कहा Eि

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