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माडवगढकामन्त्री ५९ लगे । फिर नेमिसागर उपाध्यायजी * जहांगीर बादशाह को मिले वहां परवाद हुवा । उसमे जीतनेसे बादशाहने नेमिसागरजी को " जगजीपक ” नामक विरुद दिया।
। मंडप दुर्ग में महात्माका चातुर्मास
जुक्त रासमाला की समालोचना के चोतीस वें पृष्ट में लिख्या है कि संवत १६१६ में जो महाशय श्री हीर विजयसूरीश्वर के हस्त दिक्षित हुवेथे वे ।
श्री कल्याण विजयजी उपाध्याय श्री श्री - मंझपाचल ऽर्गको यात्राकरने को पधारे में - थे और चातुर्माप्त जी वहीं कियाथा।