Book Title: Mandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Author(s): Hansvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library
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मांडवगढकामन्त्रीही - पाप पंकापहारि, बोधागाधं सुपदपदयो २. निर पुगनिगम ॥ ॥ ॥ वाताव हिमल
मखिला नर्मदा शर्मदापि, कासोः काती कसुषहरिणी तुंगनातिना ॥ तुंगा गंगा जिनमतसरी नाप्तमंतः पवित्रं, जीवा हिंसा विरललहरी। सगमागाहर देखें ॥१०॥ जोजानव्या यदि शिवपर मोहालक्ष्मीबजुदा, सिहांताब्धिं समनमरत प्राबसन्न्यायचक्र । निर्णि कानः परम गरिमा गारमानंद हेतुं, च.
वाचलं गुमगममणी संकुलं दुरपारं ।।११।। 5 माहाद विनिम्हसमुन्मूलनेह म्ति ह.
म्न. प्रानिंदनं परमतरजः पुंजमुन्नत
शम् ॥ संसव्यंश्री जिनजनगणैः का. + मदमश्रिताना, मावीरा गम जननिधि
मादरं माधुसवे ॥१२॥ नक्तिप्रहावन त्रा

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