Book Title: Mandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Author(s): Hansvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library
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माडवगडकामन्त्री
स्वश्रेयसं श्रीसहकार कीरं, संसार दावानल दाह नीरं नित दोषं कृतधर्म पोषं, प्रोन्मुक्त योषं हत जुष्ट दोषं । सकेवल श्री रमणैक वीरं, संमोह धूली हरणे समीरं. ॥२॥ अनिंद्य विद्या वदनं वदान्यं, पार्श्व स्तवीमि त्रिदशेन मान्यं । कर्म दयादाप्तनवाब्धि तीरं, माया रसादारण सार सीरं ॥३॥ अमंद मंदार सुदाम दिव्य, प्रसून सारै महितं हि पार्श्व । स्फूर्ज यशस्तर्जित हारहीरं, नमामिवीरं गिरिसार धोरं ॥ ४ ॥ निःशेष लेखवररेख नरेषु कामं, दानंददान महिमादलुत नाग्य धेय।

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