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माडवगढकामन्त्री ..
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यः श्री मंगप पुर्गस्थ जिन चैत्य शतत्रये ॥ अस्थापय स्वर्ण कुम्नान् स्व प्रतापानिवो ज्वलान् ॥१॥
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पेथडकुमारका स्वर्गवास। 30000000000manan0000000 पेथमकुमार अपने शरीरकी अवस्था देखकर अपना अन्तिम समय निकट समऊकर शान्ततासे परमात्मा का ध्यान करने लगा, संसारको असारता विचारने लगा । वास्तवमें यह
शरीर पाणी के परपोटे के समान न* श्वर है इस लिये किसी के साथ वैर
नाव न रख कर सर्व जीवोंसे क्षमा , याचना करके श्री अरिहंत नगवानका