Book Title: Mandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Author(s): Hansvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 52
________________ १२ पेथडकुमारका परिचय. श्रावक ! तू किसी तरहका खेद मत* कर, ये हंसने वाले लोग अज्ञानी हैं लदमी कण नर में राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है तेरा नाग्य चक्र तुझको शिघ्र ही अब अवस्था में लाने वाला है ऐसा वचन सुन कर पेथमकुमार गुरुमहाराज को वन्दना * कर कर हर्षित होता हुवा अपने घर की तरफ जाने लगा और कहने लगा कि संसार सागर में फंसे हुये प्राणियों , २ को ऐसे सद्गुरु महाराज हो तार स- श्री कते हैं ऐसे निःस्वार्थ गुरुकी जगत् में से - बहुत ही आवश्यकता है कितनेक - अनिमानी मनुष्य गुरु को नहीं मानते हैं। परन्तु वास्तव में ऐसे प्राणी, दया के योग्य हैं इत्यादि विचार करता हुवा ।

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