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मांडवगढकामन्त्री
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में चतुर्थव्रत के समान दूसरी वस्तुओं * में कुछ जी सार नहीं है इसके प्रजाव ६ से कुसंपको करानेवाले नारदऋषी क्लेश - को निवारण कर मोद पासके, सुद• र्शन सेठ की सूलीका सिंहासन होग* या । इस लिये इस अपार संसार समुप
को तैरने के लिये यह व्रत नौका समान है इसके प्रत्नाव से देवता जी, नमस्कार करते हैं । अपना जीवन द णिक है इस लिये तेरइच्छा हो तो मैं शीलवत धारण करूं । एसा सुनकर उस पवित्र हृदयाने प्रार्थना की कि हे स्वामिन् ! आप आनन्द से यह उत्तम व्रत अंगीकार करो मैं अंतराय मालने
वाली नहीं हूं । पती पत्नी की शंका ही * निवारण होनेपर योवन रूपी पहाम में