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४ पेथडकुमारका परिचय. ___ एकसमय किसी कार्यवश देदाशाह
देवगिरि “ दौलताबाद ” गये, शुन जावसे कर्मों की निर्जरा के लिए उपाश्रयमें जाकर सर्व मुनिराजों का वन्दना करता हुया यह चिन्तवन करने लगा कि धन्य है ऐसे मुनिवरों को जिन्होंने संसार को असार जानकर बोमदिया और मोद की प्राप्ति
के लिए ऐसी कठिन तपस्या कर व रह हैं इसी तरह की अनेक प्रका. र रकी शुज नावनाएं नाता हुया देदा - सेठ श्रावकों के पास जा बैग। उस र समय वे श्रावक लोग एक पौषधशाला * बनवाने का विचार कर रहेथे, देदासेठी विचार करने लगा कि पौषधशाला बनवानेसे महान् पुण्य होता है, क्यों ।