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"ग्रंथ रचनाका परिचय और उपसंहार."
पेथडशाहका वर्णन यद्यपि श्रीमुनि सुंदरसूरिकृत पहावलोमें, श्री रत्नमंदिरगणिकृत उपदेश तरंगिणीमें, पंडित सोम धर्म विरचित उपदेश सप्ततिमें, उपदेश रसाल में, झांझण प्रबंधमें, तथा गुर्जर प्राचीन काव्यसंग्रहमें भी मिलता है* तथापि इसका मूल आधार पुस्तकका नाम " सुकृतसागर” है, जो ग्रंथ संस्कृतमें है । जिसके रचयिताका शुभ नाम महाकवि श्री रत्नमडनगणि है। इन महात्माका सत्ता समय इस मुजिब निर्णीत है। जन्म-विक्रम संवत् १४५७ । दीक्षा १४६३ । पंडित पद १४८३ । वाचक-(उपाध्याय) पद १४९३ । आचार्य पद १५०२
और स्वर्गवास १५१७ । इसलिये चरित्रनायक पेथडशाहके समयके साथ इस ग्रंथकी घटना बहुत निकट संबंध रखतो है।
ऊपर लिखा जा चुका है कि, पेथडशाह मंत्रीके संबंधमें पूर्वाचार्योंने एवं पंडित महानुभावोंने अनेक ग्रंथोमें इस उद्धारक पुरुषके सुकृत्योंका वर्णन किया
• केवल मांडवगढका वर्णन देखने वालोंको आ. यने अकबरी और तवारीख मालवा आदि उर्दू-फारसीकी पुस्तकें देखलेनी योग्य है।