________________
प्रस्तावनामें इसी लेखककी लेखिनीसे लिखी गई है। क्योंकि आपका इस लघुतम धर्मबंधुपर प्रथमसेही धर्म प्रेम अधिक है और इसी लिये प्रसंग पाकर निजकृत धर्मकृत्यों में मुझ नाचीजको भी हिस्सेदार बनानेकी कृपा करते रहते हैं । प्रस्तुत पुस्तकको प्रस्तावनाके लाभकी तरह हंसविनोद पुस्तककी प्रस्तावनाका लाभ भी आपने इसी सेवकको दिया है । आपने अपनी कृति ओर अपने नामके साथ सेवकको मिलाकर सेवकोपरि जो उपकृति, कीहै इस बातका सेक्क आपका ऋणी है।
अंतिम वक्तव्य. इस लघु परंतु अत्युपयोगी आपके लिखे इस ग्रंथकी प्रस्तावना लिखनेको आपकी आज्ञाको शिरोधार्य समझकर मैनें यथामति यथाशक्ति उस पवित्रात्माकी जीवनोपर कुछ प्रकाश डालनेका उद्यम किया है । सजन गुणग्राहियोंका धर्म है मेरो भूल
और धृष्टताका ख्याल न कर वह अपनी प्रकृतिके योग्यही कार्य करें । पेथडशाहक पुत्ररत्न झांझणशाहके लिये मूल पुस्तकमें काफी जिकर आचुका है इस लिये इनके संबंधमें मैनें यहां कुछ नहीं लिखा है पाठक महाशय मूलपुस्तकको देखनेकी ही कृपा