Book Title: Mandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Author(s): Hansvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 27
________________ १९ हलाहल विष समझता हुआभी तेरे आग्रह और लिहासे भोगी बना हुआ हूं ! मेरी इच्छातो विरक्त होनेकी ही है। स्त्रीने सविनय प्रार्थना की, प्राणनाथ ! ' सतो पत्यनुगामिनी' - पतिव्रता सती खोका धर्म है कि, जो पति देव कहें सहर्ष उनकी आज्ञाका पालन करें । आप बडी खुशीसे अपना मनोरथ सफल करें, मैं भी साथमें ही तैयार हूं । बस फिर देरी ही क्या थी ? बडे आनंदसे उत्सव पूर्वक ३२ वर्षकी युवावस्थामें दंपतिने विधि सहित गुरुमहाराजके समक्ष ब्रह्मचर्यव्रत ले लिया । धन्य है ऐसे धर्मधन पुरुष सिंहों को !! 66 "" उपकार स्मरण और गुरुनक्ति. ' ऊपर श्री धर्मघोषसूरके प्रवेशका संकेतमात्र वर्णन कियाजाचुका है. इस लिये पुनः लिखना पुनरुक्ति है, तो भी एक बात खास वर्णनीय है। वह यह कि - जब कभी शाह गुरुमहाराजके अपने पर हुए उपकारौंको स्मरण करता तब उसका दिल भर आता, कंठ गदगद होजाता, हाथ जोड कर परम विनीत भावसे प्रत्यक्ष वा परोक्षमें उसके मुखसे जो जो उद्गार निकलते, उनका लेश मात्र 'दिग्दर्शन सुकृत सागर' नामा ग्रंथ में ग्रंथकर्त्ताने कराया है; उनमें से

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