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१७ आदमीको वधाईमें एक सोनेकी जीभ - ( जवान) और बत्तीस हीरे के दांत बनवा दिये थे ।
५ बहत्तर हजार सोनामोहरें गुरु महाराजके नगर प्रवेशमहोत्सव में खर्च की थी।
६ गुरु महाराजकी देशनाको सुनकर १८ लाख द्रम्म खर्च कर ७२ देवकुलिका सहिन "शत्रुंजयावतार" इस नामका बडा भारी श्री जिनचैत्य मांडवगढमें ब
नवायाथा । *
७ सवा करोड रुपया दानशालओं में खर्च किया । ८ हरएक मासकी द्वितीया, पंचमी, अष्टमो, एकादशी, और चतुर्दशी इन दशदिनों में सातही व्यसनके निषेधकी राज्यकी तर्फसे मुनादी - ( उद्घोषणा ) कराई |
९ राजा जयसिंहको समझा कर व्यसनोंसे बचाया। १० बत्तीस वर्षकी भर जवानीमें स्त्री सहित चतुर्थव्रत - ब्रह्मचर्य व्रतका स्वीकार किया और यावजीव - ( ताजिंदगी) विशुद्ध हृदय से उसका पालन किया.
* बाकी अन्य जैनमंदिर कितने बनवाये उनकी नामावलि देनेके लिये अवकाश न होनेसे इतनाही कह देना पर्याप्त है कि, इस कार्यकी संख्या के लिये वाचक महोदय " सुकृतसागर काव्यका चतुर्थ तरंग और प्रस्तुत हिन्दी ग्रंथ देख लेनेकी कृपा करें ।
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