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लिखी गई है । प्रायः बहुत से जैन लोग इसबातसे खूब परिचित हैं ।
artisan है कि, जहां के रहने वाले संग्रामसिंह - सोनीनें अपने धर्माचार्य श्री ज्ञानसागरसूरके प्रवेश महोत्सबमें ७२ लाख द्रव्य खर्च किया था । ६३ हजार अशर्फियां - सोनामोहरों से ज्ञान पूजन कर श्रीगुरुमुखसें पंचमांग - श्रीभगवती सूत्रका व्याख्यान सुना था ।
प्रसंग वश संग्रामसिंहकी उदारताका और सदाचारताका कुछ परिचय दिया जाना अनुचित नहीं
कहा जायगा.
एक दिनका जिकर है कि, संग्रामसिंहने गुरुमहाराजके चरणों में प्रार्थना की कि, प्रभो ! आप जैसे गीतार्थ गुरुओं का योग बडे पुण्यसे मिलता है इसलिये आप कृपा करें, व्याख्यानमें प्रभावशाली श्री भगवतीसूत्र सुनावें, ताकि आपसे सद्गुरुका मिला योग सफल होवे । गुरुमहाराजने समयानुसार योग्य श्रोता समाजको देख शुभ मुहूर्त्त में श्री भगवती सूत्रका व्याख्यान शुरू कर दिया । सोनीजीको सुननेमें इतना प्रेम और उत्साह आया कि, गुरुमहाराजके सुनानेमें श्री भगवतीसूत्रके पाठ में जब जब गोयमा यह पद