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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ३४. मणपज. धादि०४ उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० पमत्तसंज० णियमा उक० संकिलि० असंजमाभिमुह० चरिमे उक्क० वट्ट० । सेसाणं ओघं । एवं संजदाणं । णवरि धादि०४ मिच्छत्ताभिमुह० चरिमे उक० वट्ट० । एवं सामाइयच्छेदो० । णवरि वेदणी०-णामा-गो० अणियट्टि० खवग० ।
३५. परिहार० घादि०४ उक. अणुभा० कस्स० १ अण्ण० पमत्तसंजद० सागार-जा० णियमा उक० संकिलि० सामाइय-च्छेदोवट्ठावणाभिमुह० चरिमे उक्क० वट्ट० । वेद०-णामा-गो० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० अप्पमत्तसंज० सागार-जा० सव्वविसुद्ध० । आयु० ओघं ।
३६. सुहुमसंप० घादि०४ उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण. उवसम० परिवदमाण० चरिमे० उक० वट्ट । वेद०-णामा-गो० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्णद० खवग० चरिमे उक० वट्टमाण ।
३७. संजदासंजदा० घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स. ? अण्ण. तिरिक्ख० मणुस० मिच्छत्ताभिमुह. सागार-जा० णियमा उक्क० संकिलि० उक० वट्ट० । वेद
आपके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवों के जानना चाहिये।
३४. मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, असंयमके अभिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । शेष कर्मोंका भङ्ग पोषके समान है । इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागवन्धम अवस्थित और मिथ्यात्वके अभिमुखसंयत जीव चार घातिकमों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार सामायिक और छेदोपस्थापना संयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी अनिवृत्तिक्षपक जीव होता है ।
३५. परिहारविशुद्धि संयत जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, सामायिक और लेदोपस्थापना संयमके अभिमुख
और अन्तिम अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव उक्त कर्माके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम, और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत
और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है।
३६. सूक्ष्मसांपरायिक जीवोंमें चार घातिकाँके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है। वेदनीय, नाम और गोत्रकमके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर क्षपक उक्त कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धकी स्वामी है।
३७. संवतासंयतोंमें चार घातिकमौके उत्कृष्ठ अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मिथ्यात्यके अभिमुख, साकार जागृत, उत्कृष्ट संकेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च
और मनुष्य उत्त, कोंके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट Jain Education International
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