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विधि :- अनेन सारस्वत्त मन्त्रेण पुस्ताकादौ प्रारम्भ क्रियते प्रथम मन्त्र पठित्वा ।
मन्त्र
-- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः, ॐ ह्रीं नमः कृष्णवास से क्ष्मौशत सहस्त्र कोटी लक्षसह वाहने सहस्त्र वदने हौ महाबले हो अपराजिते ह्रीं प्रत्यंगिरे हौ परसैन्य निर्नाशिनि ह्रीं पर कर्म विध्वसिनि हसः परमन्त्रो छेदिनिय सर्वशत्रू च्चाटिनि ह्रसौ सर्व भूतदमनि वः सर्व देवान बंधय बंधय हूँ फट् सर्व विघ्नान छेदय छेदय सर्वानर्थान निकृतय निकृतय क्ष सर्व प्रदुष्टान् भक्षय भक्षय ह्रीं ज्वालाजिह्व हसौ करालव क े हस पर यन्त्रान स्फौट्य स्फोट्य ह्रीं वज्रशृङ्खलां त्रोटय त्रोटय असुर मुद्रा द्रावय द्रावय रोद्रमूर्ती ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे मम मनश्चितित मंत्रार्थं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र को स्मरण करने मात्र से सर्व कार्य की सिद्धि हो जाती है ।
मन्त्र :- ॐ विश्वरूपमहातेज नील कंठ विष क्षय महावल त्रिसुलेनगंडमाला छिद
छिदभिदभिद स्वाहा ।
- इस मन्त्र से आकड का दूध और तिल का तेल २१ वार या १०८ वार मन्त्रित कर गण्डमाल के ऊपर लगावे तो गण्डमाल रोग का नाश होता है ।
विधि
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र
- ॐ ह्रां ह्रीं क्रां क्रीं क्र क्रः श्रीशेषराजाय नमः हं हः ह वं क्रो क्रोसः सः
स्वाहा ।
- यह धरणेन्द्र मन्त्र है । इस मन्त्र को कोई भी महान आपत्ति के समय दस हजार जाप करे तो अभीष्ट फलदायक होता है
विधि
मन्त्र :- ॐ नयो महेश्वराय यक्षेश्वराय सर्व सिद्धाय नमोरे वार्चनाय यक्ष सेनाधिपतये इदं कार्य निवेदय तद्यथा कहि कहि ठ ठ ।
- इस मन्त्र को क्षेत्रपाल की पूजा करके क्षेत्रपाल के सामने १०८ वार जाप करे, फिर गुग्गल को २१ बार मन्त्रित करके, स्वय को धूप का धूवाँ लगाकर सोवे, तो स्वप्न मे शुभाशुभ मालूम होता है ।
विधि
मन्त्र :- ॐ शुक्ले महाशुक्ले अमुक कार्य विषये ह्रीं श्री क्षी अवतर अवतर मम शुभाशुभं स्वप्ने कथय कथय स्वाहा ।
- काच कर्पूर युक्त प्रधान श्रीखण्डे नालिख्य सिवनि काप्ट पट्ट के जाती पुष्प १०८ जाप्यो देय स्वप्ने शुभाशुभ कथयति ।
विधि