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लघु विद्यानुवादे
अन्ततः वह व्यक्ति योगी व सन्यासी बन जायेगा। देवदत्त के स्थान पर व्यक्ति का नाम लिखा जायेगा।
पंचांगुली महा यन्त्र का फल शुभ मुहूर्त मे सफेद कपडा, सफेद आसन, से पूर्व की ओर मुह करके, अनार की कलम से अष्ट गन्ध स्याही बनाकर भोज पत्र पर लिखे, फिर इस यन्त्र को ताम्र पत्र पर खुदवाकर, मन्त्र का सात बार जप करे, फिर सर्वाग पर हाथ फेरे, इसके प्रभाव से हस्त रेखा विद की भविष्यवाणी सफल होगी, यह यन्त्र सौभाग्यशाली रोग नाशक व भूत प्रेत, बाधा नाशक प्रभावापन्न यन्त्र है। मन्त्र यन्त्र के बाहर लिखा है।
विशेष मन्त्र साधना
कार्तिक मास मे जब हस्त नक्षत्र प्रारम्भ हो, उस दिन से यन्त्र की साधना प्रारम्भ करे । मार्ग शीर्ष के हस्त नक्षत्र मे पूर्ण करे । प्रतिदिन एक माला का जाप करे। जप शुरू करने के पहले ध्यान मन्त्र का एक बार उच्चारण अवश्य करे । ध्यान मन्त्र :-ॐपंचांगुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने ।
अधिष्ठात्री करस्यासौ, शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः ।। फिर जप शुरू करे, जाप के बाद नित्य पच मेवा की दस आहुतियो से अग्नि मे हवन करे । इस प्रकार साधना करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। देवी का एक चित्र बाजोट पर रखकर उसके सामने बैठकर साधना करनी चाहिये । हस्त नक्षत्र रूप आधार पर स्थित हाथ की पाच अगुलियो के प्रतीक स्वरूप देवी का एक चित्र बनवा लेना चाहिये ।
चित्र कल्पना
शनि की अर्थात् मध्यमा उगली के प्र म पोरवे के आध भाग पर देवो का मुकुट सहित मस्तक होगा । उसके पीछे सूर्य मण्डल होगः । देवो के पाठ हाथ होगे, जिनमे हिनी तरफ पहला हाथ आशीर्वाद का हो, दूसरे हाथ मे रस्नी, तीसरे मे खड्ग, चौथे मे तीर हो, हाई तरफ पहले हाथ मे पुस्तक, दूसरे मे घण्टा, रोसरे मे त्रिशूल प्रौर चौथे मे धनुष । गले मे आभूपण ललाट मे तिलक, कानो मे कुण्डल, कमर मे आभूषण व सुन्दर वस्त्र हो। पैर में मणिबन्ध रेखा के नीचे तक आये। इस तरह देवी का चित्र बनाना चाहिये।