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लघुविद्यानुवाद
विधि नं० ३ श्लोक नं० ३२
(३२) इस बती मा श्लोक के पाठ करने से ऋद्धि, वृद्धि, सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, परिवार रोग रहित होता है, सर्व कार्य की सिद्धि होती है ||३२||
पठितं भणितं गुरिणतं जयविजय रमा निबन्धनं परमम् । सर्वाधि-व्याधिहरं जपतां पद्मावती स्तोत्रम् । ३३ ।।
( ३३ ) इस पद्मावति स्तोत्र का पाठ करने वाले, कराने वाले, सुनने वाले को जय, विजय और अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, और सर्व प्रकार से मानसिक चिन्ता दूर होती है, सर्व प्रकार के रोग दूर होते है तथा परम कल्यारण करने वाला है ||३३||
श्राद्यं चोपद्रवं हन्ति द्वितीयं भूतनाशनम् । तृतीये चामरीं हन्ति चतुर्थे रिपुनाशनम् ||३४|| पंच पंच जनानां च वशीकारं भवेद् ध्रुवम् । षष्ठे चोच्चाटनं हन्ति सप्तमे रिपुनाशनम् ॥३५॥ त्यो गांचाच नवमे सर्वकार्यकृत् ।
इष्टा भवन्ति तेषां च त्रिकाल पठनार्थिनाम् ||३६||
इस पहले श्लोक से उपद्रव नाश होता है, द्वितीय श्लोक से भूत प्रेत की पीडा शात होती है, तीसरे श्लोक से मारी वगैरे उपद्रवो का नाश होता है, चौथे श्लोक से शत्रु का नाश होता है, पचम श्लोक से राक्षस वगैरे का निश्चित रूप से वशीकरण होता है, छट्ठे श्लोक से उच्चाटन प्रयोगो का नाश होता है। सातवे श्लोक से भी शत्रुओ का नाश होता है । आठवे श्लोक से उद्वेग आदि मन की आकुलता कम होती है । नवम श्लोक से सर्व कार्य की सिद्धि होती है । इस प्रकार इस स्तोत्र का त्रिकाल पाठ करने से इष्ट सिद्धि प्राप्त होती है ।। ३४ । ३५ । ३६ ।।
आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं ।
पूजार्चा नैव जानामि त्वं गतिः परमेश्वरि ||३७||
हे देवी मैं तुम्हारा श्रावाहन, विसर्जन, पूजा-अर्चना कुछ भी करना नही जानता, इसलिये जो कुछ भी करता हूँ वह भक्ति से करता हूँ इसलिये मेरी रक्षा करने वाली भी तुम ही हो, मेरा आधार भी आप ही हो ॥ ३७॥
॥ इति ॥