Book Title: Laghu Vidyanuwada
Author(s): Lallulal Jain Godha
Publisher: Kunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 664
________________ ६०० लघुविद्यानुवाद यत्र न० ८८ ह्री, | ह्री । ह्री he नये खप्पर पर खडिया मिट्टी से यन्त्र को लिखकर पुष्पादि से पूज कर धूलि से पूर्ण अग्नि मे रखकर रवैर की अग्नि से प्रज्वलित करे। इस यन्त्र के प्रभाव से भूतादिक, रोते कापते हुये बालकादिक को अथवा कोई भी हो छोडकर भाग जाते है। उस देश मे ही वास नहीं करते है ।।८८॥ यत्र न०८६ इस यन्त्र को भो बवासीर दूर हो जाता है ।।६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693