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लघुविद्यानुवाद
प्रकारान्तर में छह और चौबीस भुजा वाली नाना है। छह हाथो मे पाश, तलवार, भाला, बाल, चन्द्रमा, गदा और मूसल को धारण करती है तथा २४ हाथो मे शख, तलवार, चक्र, बाल चन्द्रमा, सफेद कमल, लाल कमल, धनुष, शक्ति, पाश, कुश, घण्टा, वरण, मूसल, ढाल, त्रिशूल, फरसा, वज्र, माला, फल, गदा पान नवीन, पत्तो का गुच्छा और वरदान वो धारण करने वाली है । (चित्र न० ४६ )
क्षेत्रपाल ४ कीर्तिघर, स्मृमिधर, विनयधर, ग्रव्जधर (ग्रन्जारव्य ) ।
(२४) श्री महावीरजी ( सिंह का चिन्ह )
" मातग यक्ष" - मूगे के जैसे वर्ण वाला, गज वाहन, मस्तक पर धर्म चक्र को धारण करने वाला और दो भुजा वाला है । बाऐ हाथ मे विजोराफल, दाहिने हाथ मे वरदान है । (चित्र न ४७ )
"सिद्धायिक क्षणी " - स्वर्ण के समान वर्ण वाली भद्रामनी, सिंहवाहिनी, दो भुजा वाली, बाये हाथ मे पुस्तक व दाहिने हाथ में वरदान युक्त है । (चित्र न० ४८) क्षेत्रपाल - ४ कुमुद, अजन, चामर, पुष्पदन्ता । ॥ इति ॥
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लोभ एक इतना बड़ा विशाल समुद्र है कि जिसके भँवर मे पडकर निकलना अत्यन्त ही कठिन है । लोभ से क्रोध आता है, लोभ से कामनाये बढती है, लोभ से अज्ञान बढता है और लोभ से विनाश होता है ।