________________
६०८
(१)
(२)
(३)
लघु विद्यानुवाद
* भजन +
महावीर कीर्ति गुरु स्वामी, दुःख मेटो जी अन्तरयामी ||टेर ||
रतनलाल के पुत्र कहाये, बून्दा देवी जी के जाये । सबसे नेहा तोडा, जग से मुँह को मोडा, दीक्षा धारी -- दुख........
वीर सागर से क्षुल्लक दीक्षा घारी,
(४) लाखो
शेढवालमे श्रा, सबसे प्राग्रह पा
आदी सागर से मुनि दीक्षा धारी ।
संकलनकर्ता - शांति कुमार
पाँचो रस का तो त्याग किया है,
त्याग स्वारथ का भी कर दिया है । सारे शास्त्रो के वेत्ता, अठारह भाषा के ज्ञाता,
पदवी आचार्य की पाई दुख - मेटो जी अन्तरयामी
सेवक व्याकुल भया,
गुरु
बार तुम्हे शीश नवाऊ,
मुनिराज दरश दर्शन बिन ये जिया,
लागे
स्वामी - दु. ख....... मेटो जी अन्तरयामी
कब पाऊ ।
नाही - दुख ....... मेटो जी अन्तरयामी
*
भजन
*
सारे जहाँ से न्यारे, मुनिराज है हमारे । झाको तो इनके अन्दर, तन-मन से ये दिगम्बर,
वैभव के हर नजारे, इनको लुभा के हारे - सारे जहाँ से "
...
इनको न मोह मठ से रखते न पर से यारी, घूरणी न ये रमाते, होते न जटाधारी । टीका तिलक से हटकर, इनके स्वरूप न्यारे -- सारे जहाँ सेवक से न खुश हो, दुश्मन से न द्वेष करते । कोई भी फिर सताये ये क्षमा भाव धरते । हर क्षण क्षमा का दरिया, बहता है इनके द्वारे- सारे जहाँ से
****