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लघुविद्यानुवाद
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काव्य न. ५ वृहत यन्त्र लेखन विधि --
षोडश दल कमल कृत्वा, तन्मध्ये, क्ली बीज दलेपु ॐ ह्री श्री ह, स् क्ली त्रिभुवन वस्य कराय ह्री नम. एतन्मत्र लिखेत् तदुपरी द्रा द्रो द्र ने द्र एतत्पच वर्णे पूर्वे लिखेत् । क्ली ब्लू क्ली ब्लू क्ली उत्तरे लिखेत् आ इ आ इ या दक्षिण लिखेत्, ॐ ॐ ॐ रक्ष
पश्चिमोलिखेत्, अनेन प्रकारेन यन्त्र कृत्वा, नाना प्रकारै पुष्प अष्ट द्रव्ये पूजन कार्य । फल --क्ली बीज षोढसाक्षरै मन्त्र । ॐ ह्री श्री ह. स् क्ली त्रिभुवन वश्य कराय ह्री स्वाहा ।
अनेन मन्त्रेण उत्तराभि मुख कृत्वा, कमल बीजस्य मालास्तु कमलासन कृत्वा शुद्ध वस्त्र तुजाप्य द्वादश सहस्रण १२००० जाप्य कृत्वा, सर्वजन प्रीतिर्भवति, राजसभा सर्वजन वश्य भाग्य सर्व लक्ष्मी लाभो भवति यन्त्र मन्त्र काव्य प्रभावात्सुख भवति ।
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर लिखकर अथवा सोने चादी वा ताँबे के पत्रे पर लिखकर मन्त्र का १२००० जाप करे । उत्तर की तरफ मुख करे, कमल बीज की माला और कमलासन शुद्ध वस्त्र से, मन स्थिर करके, जाप करने से और यन्त्र की पुष्पो से और अष्ट द्रव्य से पूजा करने से सर्वजनप्रिय होता है। राजसभा मे सर्वजन वश्य होते है। भाग्य खुलता है। लक्ष्मी का लाभ होता है । जपने वाला मन्त्र-ॐ श्री ह्री ह. स् क्ली त्रिभुवन वश्य कराय ह्री स्वाहा ॥५॥
श्लोकार्थ नं० ३ की विधि (५) अर्थ की मन्त्र विधि-इस ५वे श्लोक जाप्य करने से वशीकरण मन्त्र इस प्रकार है-- ___ॐ ह्रीं प्रां द्रां ॐ ह्रीं क्रों द्री ॐ ह्री ऐ क्ली ॐ ह्री ॐ ब्लों।
यह इसका मन्त्र है, मन्त्र को १२॥ हजार जाप्य मूगा की माला से करने पर वशीकरण पाँच नः के श्लोक का पाठ करने से भी वही कार्य होता है। लीला ज्यालोलं नीलोत्पलदलनयने, प्रज्वलद्वाडवाग्नित्रुट्यज्ज्वाला स्फुलिगस्फुरदरुणकरोदग्रवज्राग्रहस्ते ।। ह्रां ह्रीं ह्रह्रौ हरंती हर हर ह ह ॐ कार भीमैकघोरे
पर्दो, पद्मासनस्थे व्यपनय दुरितं देवि ! देवेद्रवंधे ॥६॥ व्याख्या :--व्यपनय-स्फोटय । कि ? तत् दुरित विध्न कीदशे-लीला-व्यालोलनीलोत्पलदलनयने ।
लीलया व्यालोल नीलोत्पलस्य दल लीलाव्यालोल च तत् नीलोत्पलदल च लीला