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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र नं० १०
षट्कोणेचक्रध्यप्रणववरयुलेवाग्भवेकामराजे। | क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्ली ली
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ध्यानात् संक्षोभयंति त्रिभुवनवसकृदृरतमतिविपड़ों
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॥ क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लाँ हंसासद सविन्वा विकसित कमलेकर्णिको निधाय
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लक्ष्मीदायक यंत्र श्रां कों ह्रीं पंचबारणैलिखित षट् दले चक्र मध्ये सहंसः ह. स्क्ली श्री पत्रान्तरालेस्वर परिकलिते वायुना वेष्टितांगी ह्रीं वेष्टे रक्तपुष्पैर्जपति मरिणमतां क्षोभिणी वीक्ष्यमाणा चन्द्रार्क चालयन्ती सपदि जनहिते रक्ष मां देवि ! पद्म ॥११॥
___ श्लोक नं. ११ (११) आ को ह्री और पचवाणमाने, द्रा द्री क्ली ब्लू स इन मत्राक्षरो को आठ पाखडियो के
अन्दर तथा चक्र के मध्य मे स ह स ह्रस्क्ली श्री, इन बीजो को और यत्र के बीच में सोलह स्वर लिखे, फिर 'य' वायु वोज से यत्र को लपेटना और पश्चात् 'ह्री' शक्ति बोज से यत्र को वेष्टित करे। यह यन्त्र रचना कही।